रायपुर, 24 सितंबर 2024
भारत की जनजातीय विविधता में गोंड आदिवासी समुदाय का महत्वपूर्ण स्थान है। गोंड समुदाय मध्य भारत के कई राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में प्रमुख रूप से निवास करता है। गोंड आदिवासियों की अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है, जो उन्हें हिंदू धर्म से अलग करती है। उनकी जीवनशैली, धार्मिक मान्यताएँ, और रीति-रिवाज प्रमुख रूप से प्रकृति के प्रति श्रद्धा और आदिवासी परंपराओं पर आधारित होते हैं, जो हिंदू धर्म के कई तत्वों से भिन्न हैं।
गोंडों की धार्मिक मान्यताएँ
गोंड आदिवासियों का मुख्य विश्वास प्रकृति पूजा में है। वे जंगल, पहाड़, नदी और पेड़ों को देवताओं के रूप में पूजते हैं। उनके प्रमुख देवता फरसापेन (जो जंगल और शिकार के देवता माने जाते हैं) हैं। इसके अलावा, गोंड समुदाय के लोग अपने पूर्वजों की पूजा भी करते हैं, जिसे पेन पूजा के नाम से जाना जाता है। यह हिंदू धर्म के देवताओं और अवतारों से पूरी तरह अलग है, जहाँ पूजा के केंद्र में मुख्य रूप से विष्णु, शिव, राम और कृष्ण जैसी देवता होते हैं।
धार्मिक और सामाजिक भिन्नताएँ
गोंडों की धार्मिक मान्यताएँ मुख्य रूप से उनकी जनजातीय संस्कृति से जुड़ी हैं, जिसमें प्रकृति के तत्वों का महत्वपूर्ण स्थान है। वहीं हिंदू धर्म में वेद, पुराण, और उपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथों का प्रमुख स्थान होता है, जो गोंड परंपराओं में नहीं पाए जाते। गोंड समुदाय में सामाजिक संरचना भी भिन्न होती है, जहाँ कबीलाई ढांचे और पारंपरिक नियमों का पालन किया जाता है, जबकि हिंदू धर्म में वर्ण व्यवस्था और सामाजिक श्रेणियों का विशेष महत्व है।
परंपरागत त्योहार और अनुष्ठान
गोंड आदिवासियों के प्रमुख त्योहारों में करमा, आखड़ी और जतर आते हैं। ये सभी त्योहार प्रकृति, फसलों और जनजातीय रीति-रिवाजों से जुड़े होते हैं। गोंड समुदाय की विवाह और मृत्यु संबंधी प्रथाएँ भी विशिष्ट हैं, जिनमें प्रकृति से जुड़ी मान्यताएँ झलकती हैं। इसके विपरीत, हिंदू धर्म में विवाह और अंतिम संस्कार वैदिक परंपराओं और मंत्रों पर आधारित होते हैं।
आदिवासी गोंड: हिंदू धर्म से अलग सांस्कृतिक पहचान
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