कोटा में बच्चों में अवसाद और आत्महत्या के मामले: कारण और रोकथाम के उपाय

Isha Maravi
Isha Maravi



कोटा, राजस्थान, भारत का एक प्रमुख शैक्षिक केंद्र बन चुका है, जहां देशभर से छात्र इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं। हालांकि, यहां के कोचिंग संस्थानों की लोकप्रियता के साथ एक गंभीर समस्या भी बढ़ रही है – छात्रों में अवसाद और आत्महत्या के मामले। कोटा में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, और इस मुद्दे को हल करने की आवश्यकता है।

अवसाद और आत्महत्या के बढ़ते आंकड़े

हाल के वर्षों में, कोटा में पढ़ाई कर रहे छात्रों में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़े हैं। 2023 के आंकड़ों के अनुसार, कोटा में हर साल लगभग 15-20 छात्रों द्वारा आत्महत्या के मामले सामने आते हैं। यह आंकड़ा केवल उन मामलों का है जो रिपोर्ट किए गए हैं, असल संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। इसके अलावा, हजारों छात्र अवसाद से पीड़ित होते हैं, लेकिन उन्हें सही समय पर मदद नहीं मिल पाती है। एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) की रिपोर्ट में बताया गया है कि आत्महत्या के मुख्य कारण अत्यधिक पढ़ाई का दबाव, परिवार की अपेक्षाएं, और भविष्य को लेकर असुरक्षा की भावना हैं।

क्यों होता है अवसाद?

1. अत्यधिक प्रतिस्पर्ध : कोटा में छात्रों पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव होता है। यहां छात्रों को लगातार अच्छा प्रदर्शन करने की अपेक्षा की जाती है, और जब वे इस दबाव को सहन नहीं कर पाते, तो वे मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं।

2. पारिवारिक अपेक्षाएं: कई छात्र अपने परिवार की उम्मीदों को पूरा करने के लिए कोटा आते हैं। परिवार द्वारा डाली गई उम्मीदों का बोझ उन पर मानसिक दबाव डालता है, जिससे अवसाद और तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है।

3. एकाकीपन: कोटा में छात्र अपने परिवार से दूर रहते हैं, जिससे उनमें अकेलापन और सामाजिक समर्थन की कमी महसूस होती है। यह अकेलापन मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और अवसाद का एक प्रमुख कारण बनता है।

4. लंबे समय तक पढ़ाई का दबाव: 12-15 घंटे तक लगातार पढ़ाई करना मानसिक और शारीरिक थकावट का कारण बनता है। यह थकावट धीरे-धीरे अवसाद में बदल सकती है।

क्या कर सकते हैं रोकथाम के लिए?

1. मनोवैज्ञानिक सहायता: कोटा के कोचिंग संस्थानों को छात्रों के लिए नियमित रूप से मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग की व्यवस्था करनी चाहिए। छात्रों को उनके मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करना और उन्हें किसी भी समस्या के समय सहायता प्रदान करना बेहद जरूरी है।

2. अभिभावकों की भूमिका: माता-पिता को अपने बच्चों पर अधिक दबाव डालने से बचना चाहिए। उन्हें बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना चाहिए और उनकी भावनाओं का समर्थन करना चाहिए। यह जरूरी है कि अभिभावक बच्चों के प्रदर्शन पर ध्यान देने की बजाय उनकी मानसिक सेहत को प्राथमिकता दें।

3. वैकल्पिक गतिविधियाँ: कोचिंग संस्थानों और छात्रों को केवल पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय अन्य गतिविधियों, जैसे कि खेल, कला, और संगीत में भी भाग लेना चाहिए। ये गतिविधियाँ छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

4. सरकारी हस्तक्षेप: सरकार को कोचिंग संस्थानों में छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति पर निगरानी रखने के लिए नियमों को सख्त करना चाहिए। साथ ही, मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के कार्यक्रम चलाने चाहिए।

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