अगर आप बाहर से खाना मंगवाते हैं तो ये जान ले…

Shubham Singh
Shubham Singh

16 सितंबर 2024

भारत में फूड डिलीवरी एप्स या प्लेटफॉर्म से भोजन ऑर्डर करने का ट्रेंड लगातार बढ़ता जा रहा है। भोजन का ऑर्डर करने में ये एप्स सुविधाजनक तो हैं, लेकिन कई बार देर से डिलीवरी मिलने, ऑर्डर किए हुए भोजन के बजाय कुछ और भेज देने या भुगतान संबंधी समस्याओं के कारण मजा खराब हो जाता है। इन मामलों में मदद करने के लिए उपभोक्ता कानून हैं। आइए जानते हैं कि ग्राहकों के पास इसको लेकर क्या अधिकार हैं और इनका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(9) में उपभोक्ता अधिकारों के बारे में स्पष्ट व्याख्या की गई है। धारा 2(9)(i) के अनुसार उपभोक्ताओं को घातक उत्पादों से सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। यानी इसके अनुसार उपभोक्ताओं को बासी भोजन या नुकसानदायक भोजन नहीं दिया जा सकता। उपभोक्ताओं को वस्तुओं, उत्पादों या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा और कीमत के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार भी है। इसका मतलब है कि खाद्य वितरण प्लेटफाॅर्मों और रेस्तराओं को पारदर्शिता बनाए रखनी होगी। हालांकि इन अधिकारों के बावजूद कई बार इनका उल्लंघन होता है। इस पर धारा 2(9)(v) ‘निवारण (समस्या का समाधान) मांगने का अधिकार’ प्रदान करती है।

फूड डिलीवरी मार्केट का मूल मंत्र है ऑर्डर की गई भोजन सामग्री की समय पर डिलीवरी। इसलिए अगर कोई सर्विस प्रदाता इसमें देरी करता है या डिलीवरी ही नहीं कर पाता है तो इसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार सेवा में कमी माना जाता है। इस सिलसिले में केरल के अरुण कृष्णन के मामले को लिया जा सकता है। उनके एक ऑर्डर को एक फूड डिलीवरी प्लेटफाॅर्म डिलीवर नहीं कर पाया। 

इसलिए अरुण को वही आइटम दोबारा से ऑर्डर करना पड़ा। हालांकि वह भी उपभोक्ता को डिलीवर नहीं किया जा सका और कोई रिफंड भी नहीं दिया गया। उपभोक्ता आयोग ने अधिनियम की धारा 2(6)(iii) के अनुसार इसे सेवा में कमी माना। रिफंड नहीं करने को अधिनियम की धारा 2(47) के तहत अनुचित व्यापार व्यवहार माना गया। आयोग ने अरुण द्वारा भुगतान की गई राशि वापस करने का आदेश दिया, साथ ही मानसिक पीड़ा के लिए 5,000 रुपए और मुकदमे की लागत के रूप में 3,000 रुपए देने का आदेश भी दिया।

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