14 अक्टूबर 2024
भारत के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को कनाडा को जमकर लताड़ लगाई। विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि उसे रविवार को एक राजनयिक संदेश मिला, जिसमें कहा गया है कि कनाडा में भारत के उच्चायुक्त और कुछ राजनयिक एक मामले की जांच में ‘रुचिकर व्यक्ति’ (पर्सन ऑफ इंट्रेस्ट हैं)। आमतौर पर रुचिकर व्यक्ति वह होते हैं, जो किसी आपराधिक मामले में संदिग्ध होते हैं। हालांकि, उन पर औपचारिक तौर पर कोई आरोप नहीं लगाए जाते।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार इन बेतुके आरोपों को सिरे से खारिज करता है और इनके पीछे ट्रूडो सरकार के राजनीतिक एजेंडे को वजह मानता है, जो कि वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है।
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, “ट्रूडो सरकार ने जानने के बावजूद कनाडा में भारतीय राजनयिकों और समुदाय के नेताओं को धमकाने और डराने वाले हिंसक कट्टरपंथियों और आतंकियों को जगह दी है। इनमें राजनयिकों और भारतीय नेताओं को मौत की धमकियां तक शामिल हैं। इन सभी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उचित करार दिया जाता रहा। कुछ व्यक्ति जो कि अवैध तौर पर कनाडा में घुसे, उन्हें जल्द नागरिकता दी गई। भारत सरकार की तरफ से कनाडा से आतंकियों और संगठित आपराधिक सरगनाओं के प्रत्यर्पण के कई अनुरोधों को भी नकार दिया गया।”
विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का भारत विरोध काफी पहले साबित हो चुका है। 2018 में अपने भारत दौरे में भी वे वोट बैंक की राजनीति को साधने आए थे, लेकिन उनका यह दांव उल्टा पड़ गया। उनके कैबिनेट में कई ऐसे लोग शामिल हैं, जो कि भारत के खिलाफ सीधे तौर पर कट्टरवाद और अलगाववाद से जुड़े हैं। दिसंबर 2020 में भारत की आंतरिक राजनीति में उनके दखल ने साफ दिखाया कि वह इन मामलों में कितना दूर तक जाने का विचार रखते हैं।
उनकी (ट्रूडो की) सरकार एक ऐसे राजनीतिक दल पर निर्भर है, जिसके नेता खुले तौर पर भारत के खिलाफ अलगाववाद की विचारधारा का समर्थन करते हैं, जिससे मामले सिर्फ बढ़े हैं।
कनाडाई राजनीति में विदेशी दखल पर आंखें मूंदने को लेकर आलोचनाओं के बावजूद ट्रूडो सरकार लगातार अपने नुकसानों को कम करने के लिए भारत का नाम ले आती है। यह ताजा घटनाक्रम, जिसमें भारतीय राजनयिकों को निशाना बनाया जा रहा है इस दिशा में अगला कदम है। यह कोई संयोग नहीं है कि यह सब तब हो रहा है, जब पीएम ट्रूडो को विदेशी दखल को लेकर एक आयोग के सामने पेश होना है। यह ट्रूडो सरकार के भारत-विरोधी अलगाववाद के एजेंडे का भी समर्थन करता है, जिसे उन्होंने सिर्फ कुछ छोटे-मोटे फायदों के लिए लगातार बढ़ावा दिया है।