2 सितंबर 2024
भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर लंबे समय से बहस चल रही है, लेकिन एक मुद्दा जो अब भी कानूनी दृष्टिकोण से विवादित और उपेक्षित है, वह है वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप)। यह एक ऐसा अपराध है जिसे हमारे देश में कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिली है। भारतीय कानून के अनुसार, विवाह के भीतर हुए यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जाता, चाहे वह संबंध सहमति से हो या बिना सहमति के। यह स्थिति न केवल महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच को भी मजबूत करती है।
वैवाहिक बलात्कार: मौजूदा कानून और इसकी खामियां
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 बलात्कार की परिभाषा देती है, लेकिन इसमें एक अपवाद है, जो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बलात्कार को अपराध नहीं मानता, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक हो। इस अपवाद के कारण, विवाहित महिलाओं को कानूनी संरक्षण नहीं मिलता है, जो कि एक गंभीर मुद्दा है। यह कानून महिलाओं की स्वायत्तता और उनकी शारीरिक सुरक्षा के अधिकार को नकारता है।
यह स्थिति उन महिलाओं के लिए और भी अधिक दयनीय हो जाती है जो अपने पति के हाथों शोषित होती हैं और उन्हें कानूनी न्याय पाने का कोई रास्ता नहीं मिलता। जब विवाह के नाम पर एक महिला के साथ बलात्कार किया जाता है, तो यह न केवल उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है, बल्कि यह उसके आत्मसम्मान और स्वाभिमान पर भी गहरी चोट करता है।
वैवाहिक बलात्कार को अपराध क्यों माना जाना चाहिए?
सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि विवाह एक साझेदारी है, जिसमें दोनों पक्षों की सहमति और सम्मान महत्वपूर्ण है। किसी भी तरह का जबरन यौन संबंध, चाहे वह विवाह के भीतर हो या बाहर, एक गंभीर अपराध है। यह सोच कि विवाह के भीतर यौन संबंधों के लिए सहमति की आवश्यकता नहीं है, पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता को दर्शाती है, जहां महिलाओं को केवल वस्तु के रूप में देखा जाता है।
दूसरे, वैवाहिक बलात्कार का मानसिक और शारीरिक प्रभाव महिलाओं पर गंभीर होता है। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है, जिससे अवसाद, चिंता, और अन्य मानसिक विकार हो सकते हैं। इसके अलावा, शारीरिक हिंसा के मामलों में महिलाओं के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव भी पड़ सकते हैं।
तीसरे, यदि वैवाहिक बलात्कार को कानूनी रूप से अपराध माना जाए, तो यह महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे न केवल महिलाओं को न्याय मिलेगा, बल्कि समाज में भी एक मजबूत संदेश जाएगा कि विवाह के भीतर भी यौन हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
दंडित क्यों होना चाहिए?
वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानने और इसके दोषियों को दंडित करने से महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को बढ़ावा मिलेगा। यह उन पुरुषों को भी चेतावनी देगा जो अपनी पत्नियों के साथ जबरदस्ती करते हैं, कि उनके इस कृत्य के लिए उन्हें कानूनी सजा भुगतनी पड़ेगी। इसके अलावा, यह कदम महिलाओं के आत्मसम्मान और स्वायत्तता को मजबूत करेगा और उन्हें यह विश्वास दिलाएगा कि उनका शरीर केवल उनका है और कोई भी व्यक्ति, यहां तक कि उनका पति भी, उनके साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता।
दंडित करने का एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि इससे समाज में जागरूकता बढ़ेगी। यह संदेश जाएगा कि विवाह के भीतर भी महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इसके अलावा, इससे अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपने अधिकारों के लिए खड़ी हों और न्याय की मांग करें।
कानून में बदलाव की आवश्यकता
भारत में वैवाहिक बलात्कार को कानूनी रूप से मान्यता देना और इसके दोषियों को दंडित करना समय की मांग है। यह केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि एक समान और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए भी आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि विवाह का मतलब किसी भी प्रकार की हिंसा की स्वीकृति नहीं है, और प्रत्येक महिला को अपनी शारीरिक स्वायत्तता का अधिकार है। इसलिए, कानून में बदलाव की आवश्यकता है ताकि सभी महिलाओं को न्याय मिल सके और उनके साथ होने वाले अन्याय को रोका जा सके।