लखनऊ, 22 अगस्त
आँचल अवस्थी
वरिष्ठ संवाददाता
टेनिस का विश्वकप कहे जाने वाले “डेविस कप” में उत्तर प्रदेश से 84 साल बाद कोई खिलाड़ी शामिल होने जा रहा है और इस खिलाड़ी का नाम है सिद्धार्थ विश्वकर्मा। डेविस कप के इतिहास में इससे पहले यूपी के गौस मोहम्मद का नाम 84 साल पहले शामिल हुआ था। बनारस के रहने वाले सिद्धार्थ अपने खेल की प्रैक्टिस के लिए दिल्ली में खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देकर पैसे जुटाते रहे हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें खुद के कोच से कई बार डांट भी खानी पड़ी।
दिमागी बुखार से चढ़ाया टेनिस का बुखार
सिद्धार्थ की कहानी कुछ यूं है कि 7 वर्ष की उम्र में उन्हें दिमागी बुखार हुआ, तब बुखार से रिकवरी के बाद डॉक्टर ने उन्हें शारीरिक रूप से मजबूत होने के लिए खेलने की सलाह दी और तभी सिद्धार्थ ने टेनिस रैकेट हाथों में थाम लिया। वाराणसी से लखनऊ, मध्यप्रदेश और अब नोएडा में खेल की तैयारी कर रहे हैं।
सिद्धार्थ का खेल जारी रहे इसके लिए उनके पिताजी को इलेक्ट्रॉनिक सामान रिपेयरिंग की दुकान तक बंद करनी पड़ी। शुरुआती कोच अनिल चौहान और राजेश मिश्र के सहयोग से वह लखनऊ पहुंचे। आर्थिक समस्या की जानकारी होने पर कई लोगों ने मदद की।
साल 2012 में खेलने के लिए दिल्ली पहुंच गए। यहां कंधे में चोट लगी और लिगामेंट इंजरी हो गई। वर्ष 2014 में सिद्धार्थ अपने पुराने कोच के पास छत्तीसगढ़ चले गए। करीब एक साल चोट से उबरने में लगा। इसके बाद खेल में वापसी की और 2018 में टॉप टेन खिलाड़ियों की सूची में आठवीं रैंक हासिल की। इसी वर्ष गोआ में हुए राष्ट्रीय खेलों में यूपी को स्वर्ण पदक दिलाकर नेशनल चैंपियन बने।
केवल 16 हफ्तों में हासिल किया मुकाम
सिद्धार्थ कहते हैं कि विदेशी खिलाड़ी एक साल में 35 से 38 सप्ताह मैच खेलते हैं, जो कि यहां नहीं होता। भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। अगर यहां भी ज्यादा से ज्यादा मैच होंगे तो खिलाड़ियों की रैंक और उनके प्रतिभा का निखार संभव हैं। सिद्धार्थ ने खुद यह मुकाम वर्ष में 16 सप्ताह खेलकर हासिल किया है।
कई घंटे इंतजार के बाद मिलता था बीएचयू में खेलने का मौका
सिद्धार्थ ने बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. पंजाब सिंह के साथ एंफीथियेटर मैदान में सिंथेटिक कोर्ट पर उद्घाटन मैच खेला था। टेनिस का जुनून ही था कि वह हर सुबह 6 बजे बीएचयू पहुंच जाते थे। उस समय बीएचयू के पूर्व कुलपति अभ्यास करते थे। उनके चले जाने के बाद सिद्धार्थ कोर्ट पर खेलते थे। एक बार पूर्व कुलपति ने सिद्धार्थ से पूछा कि रोज तुम किसलिए इंतजार करते हो और सच पता चलने पर उन्होंने सिद्धार्थ को वहां खेलने की इजाजत दे दी।