
गंगोत्री, 18 जुलाई 2025:
सावन का महीना और कांवड़ यात्रा — वर्षों से श्रद्धा, भक्ति और उत्साह का प्रतीक रही है। लेकिन इस बार की यात्रा में न वो भीड़ है, न रौनक, और न ही वह आस्था की गूंज जो उत्तराखंड की वादियों में हर साल गूंजती थी। गंगोत्री बाजार सूना पड़ा है, होटल खाली हैं और सड़कें वीरान।
गंगोत्री से गोमुख और फिर हरिद्वार तक के रास्ते में नज़र दौड़ाएं तो अधिकतर जगहों पर न तो कांवड़िये दिख रहे हैं, न व्यापारियों के चेहरे पर खुशी। गोमुख, जो गंगा का उद्गम माना जाता है, तक की यात्रा इस बार बहुत कम लोग कर पा रहे हैं। बारिश और भूस्खलन की चेतावनियों ने रास्तों को और खतरनाक बना दिया है। BRO द्वारा बनाई गई अस्थायी सड़कों पर कीचड़ और पत्थरों की वजह से सफर मुश्किल हो गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुष्प वर्षा और सुरक्षा की घोषणाओं के बावजूद, गंगोत्री से लौटते अधिकतर कांवड़िये बता रहे हैं कि वे गोमुख तक नहीं जा पा रहे। मौसम की मार, दुर्गम चढ़ाइयाँ और लगातार भूस्खलन की घटनाएं आस्था की इस यात्रा को कमजोर कर रही हैं।
वहीं दूसरी ओर कुछ सामाजिक नजरिए भी कांवड़ यात्रा पर असर डाल रहे हैं। कुछ वर्गों में यह भावना घर कर गई है कि कांवड़ यात्रा में शामिल युवा अनुशासनहीन हैं या अव्यवस्था फैलाते हैं। जबकि असलियत यह है कि अधिकतर कांवड़िये पूरी श्रद्धा से यात्रा करते हैं — कंधे पर बहंगी में जल भरकर, पग-पग पर मंत्रोच्चारण करते हुए।
पुरोहितों और स्थानीय व्यापारियों की माने तो इस बार यात्रा में आई गिरावट ने उनकी आजीविका पर भी असर डाला है। सीमावर्ती गांव जैसे मुकबा, हर्षिल और तपोवन तक यात्रियों की संख्या नगण्य है।
कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक यात्रा नहीं, यह सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना की धारा रही है। इस बार की वीरानी इस चेतना के धीमे पड़ने का संकेत हो सकती है — या फिर एक अस्थायी ठहराव।