
नई दिल्ली | 25 जुलाई 2025
संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द हटाने को लेकर उठ रहे सवालों पर सरकार ने संसद में स्पष्ट जवाब दिया है। राज्यसभा में पूछे गए एक लिखित प्रश्न के उत्तर में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इन शब्दों को हटाने की न तो कोई योजना है और न ही सरकार ने कोई संवैधानिक प्रक्रिया शुरू की है।
मेघवाल ने बताया कि सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना में किसी भी प्रकार का संशोधन करने का इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी बदलाव के लिए व्यापक बहस और सर्वसम्मति की आवश्यकता होती है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई औपचारिक कदम नहीं उठाया गया है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही कुछ समूह या संगठन इन शब्दों पर पुनर्विचार की मांग कर रहे हों, लेकिन ऐसी बहसें सरकार के रुख को प्रतिबिंबित नहीं करतीं। उन्होंने बताया कि नवंबर 2024 में उच्चतम न्यायालय ने भी इन शब्दों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था और कहा था कि संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने की संसद की शक्ति है।
न्यायालय ने कहा कि ‘समाजवादी’ शब्द भारत को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में दर्शाता है, जो निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता। वहीं, ‘पंथनिरपेक्ष’ संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा है, जिसे बदला नहीं जा सकता।
गौरतलब है कि हाल ही में आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा था कि आपातकाल के समय 1976 में इन शब्दों को जोड़ा गया था और अब इनके औचित्य पर पुनर्विचार होना चाहिए। इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई थी।
सरकार ने अब स्पष्ट कर दिया है कि संविधान की प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने का कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं है और ऐसा कोई कदम फिलहाल उठाया भी नहीं जाएगा।