
नयी दिल्ली, 16 जनवरी 2025:
भारत ने दो अंतरिक्ष यानों (स्पेसक्राफ्ट) को सफलतापूर्वक जोड़कर (डॉकिंग) अंतरिक्ष में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। इससे पहले केवल रूस, अमेरिका और चीन ने ही ऐसा किया था। आज 16 जनवरी को इसरो ने डॉकिंग प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया। यह सफलता चंद्रयान-4, गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे आगामी मिशनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
स्पेडेक्स मिशन की लॉन्चिंग
इसरो ने 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से PSLV-C60 रॉकेट लॉन्च किया। इस रॉकेट ने 470 किमी ऊंचाई पर दो स्पेसक्राफ्ट – टारगेट और चेजर – को पृथ्वी की कक्षा में तैनात किया।
डॉकिंग की प्रक्रिया और चुनौतियाँ
शुरुआत में 7 जनवरी 2025 को इन दोनों स्पेसक्राफ्ट को जोड़ने (डॉकिंग) की योजना थी, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण इसे टालना पड़ा। 9 जनवरी को एक और प्रयास किया गया, परंतु 3 मीटर की दूरी तक लाने के बाद भी डॉकिंग पूरी नहीं हो सकी। आखिरकार, 16 जनवरी को डॉकिंग प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी हुई।
इसरो का आधिकारिक बयान:
इसरो ने डॉकिंग के बाद कहा, “स्पेसक्राफ्ट की डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हुई। यह एक ऐतिहासिक क्षण है। डॉकिंग प्रक्रिया सटीकता और पूर्णता के साथ पूरी की गई। अब आने वाले दिनों में अनडॉकिंग और पावर ट्रांसफर का परीक्षण किया जाएगा।”
स्पेडेक्स मिशन का उद्देश्य:
• पृथ्वी की निचली कक्षा में दो छोटे स्पेसक्राफ्ट की डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन।
• डॉकिंग के बाद दो स्पेसक्राफ्ट के बीच इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसफर का परीक्षण।
• अंतरिक्ष में स्पेसक्राफ्ट को जोड़ने और अलग करने की प्रक्रिया को समझना।
स्पेडेक्स मिशन प्रक्रिया:
• 30 दिसंबर को PSLV-C60 रॉकेट से दो छोटे स्पेसक्राफ्ट्स को अलग-अलग कक्षाओं में तैनात किया गया।
• दोनों स्पेसक्राफ्ट्स को ज़मीन से नियंत्रित किया गया और उन्हें धीरे-धीरे एक-दूसरे के करीब लाया गया।
• 5 किमी से 0.25 किमी की दूरी के लिए लेज़र रेंज फाइंडर का उपयोग हुआ।
• 300 मीटर से 1 मीटर की दूरी तक डॉकिंग कैमरा और फिर 1 मीटर से शून्य की दूरी तक विजुअल कैमरा का उपयोग किया गया।
मिशन क्यों महत्वपूर्ण है:
• चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा से नमूने लाने के लिए।
• भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण और वहां आवागमन के लिए।
• गगनयान मिशन में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के लिए।
• सैटेलाइट मरम्मत, इंटरप्लेनेटरी मिशन और चंद्रमा पर मानव मिशन के लिए।
‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ का पेटेंट:
भारत ने अपने ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ का पेटेंट प्राप्त किया है। इस प्रणाली को इसरो ने स्वयं विकसित किया क्योंकि अन्य देश इस तकनीक को साझा नहीं करते।
स्पेस एक्सपेरिमेंट्स के लिए 24 पेलोड:
इस मिशन में 24 पेलोड भेजे गए, जिनमें 14 इसरो और 10 गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) के थे। ये पेलोड PSLV रॉकेट की चौथी स्टेज में POEM (PSLV ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल) में रखे गए थे।
अंतरिक्ष डॉकिंग का इतिहास:
• अमेरिका: पहली बार 16 मार्च 1966 को जेमिनी VIII मिशन में डॉकिंग हुई।
• सोवियत यूनियन: 30 अक्टूबर 1967 को दो स्वचालित स्पेसक्राफ्ट्स ने डॉकिंग की।
• चीन: 2 नवंबर 2011 को तियांगोंग-1 के साथ पहली सफल डॉकिंग।