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जेपी नड्डा के बाद किसे मिलेगी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान..? होली से पहले होगा बड़ा एलान!

नई दिल्ली, 28 फरवरी 2025

सूत्रों ने संकेत दिया है कि अगले भाजपा अध्यक्ष की घोषणा एक पखवाड़े के भीतर हो सकती है, क्योंकि 12 राज्यों में पार्टी के संगठनात्मक चुनाव पूरे हो चुके हैं। सूत्रों ने कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा 15 मार्च से पहले होने की संभावना है, जिसके बाद हिंदू कैलेंडर में अशुभ समय शुरू हो जाता है। 

भाजपा अध्यक्ष के चुनाव के लिए 50 प्रतिशत राज्यों में संगठनात्मक चुनाव होना जरूरी है। उससे पहले बूथ, मंडल और जिला स्तर पर चुनाव होते हैं।  फिलहाल 36 राज्यों में से केवल 12 में ही चुनाव पूरे हुए हैं। इसलिए कम से कम छह और राज्यों में इकाई प्रमुखों के चुनाव की जरूरत है। भाजपा अगले साल विधानसभा चुनाव वाले राज्यों – तमिलनाडु, बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम और गुजरात में प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ा रही है। बिहार में कोई बदलाव नहीं होगा, जहां इस साल के अंत तक चुनाव होने हैं।

राज्य प्रभारियों को पहले ही शीर्ष पद के लिए संभावित नाम प्रस्तुत करने को कहा जा चुका है।  सूत्रों ने बताया कि इस मामले पर अटकलें जोरों पर हैं, लेकिन भाजपा के चौंकाने वाले फैसलों के रिकॉर्ड को देखते हुए इस समय किसी नाम पर फैसला करना समझदारी नहीं होगी। 

लेकिन जो बात सर्वसम्मति से स्वीकार की गई है वह यह है कि उम्मीदवार को भाजपा के वैचारिक मार्गदर्शक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सहित सभी को स्वीकार्य होना चाहिए तथा संगठनात्मक मूल्यों में डूबा होना चाहिए। पार्टी जिन अन्य बातों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है, उनमें जातिगत समीकरण, भाषा विवाद और परिसीमन पर उत्तर-दक्षिण विभाजन, तथा सबसे महत्वपूर्ण बात, उत्तर प्रदेश में अपना समर्थन आधार मजबूत करना शामिल है, जहां लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के कारण वह सदन में अकेले बहुमत से वंचित रह गई थी।

नड्डा ने 2019 में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभाली थी। जनवरी 2020 में उन्हें सर्वसम्मति से भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पदभार संभाला।

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनका कार्यकाल जून 2024 तक बढ़ा दिया गया था और सरकार में उनके शामिल होने के साथ ही पार्टी उनके उत्तराधिकारी के लिए संभावित उम्मीदवारों पर विचार कर रही है।  लेकिन यह प्रक्रिया धीमी रही है और नेता इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की उम्मीद कर रहे हैं। यह बात राज्य स्तर पर भी लागू होती है, तथा कुछ राज्यों में यह एक कठिन रास्ता रहा है, जहां विकल्प को लेकर असहमति है।

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