देहरादून, 31 मार्च 2025
पर्यावरणविदों और बुद्धिजीवियों ने रविवार को विकास परियोजनाओं के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के विरोध में ‘पर्यावरण बचाओ आंदोलन 2.0’ के तहत देहरादून में वृक्ष शवयात्रा निकाली। ‘देहरादून के पीड़ित नागरिक’ के बैनर तले दर्जनों लोग शहर के मध्य स्थित परेड ग्राउंड में एकत्र हुए और ‘राक्षसी विकास’ के नाम पर अब तक काटे जा चुके तथा जल्द ही काटे जाने वाले पेड़ों को श्रद्धांजलि दी।
सफेद कपड़े पहने और मुंह पर काली पट्टी बांधे लोग शांतिपूर्वक सूखी टहनियों से बनी अर्थी लेकर राज्य सचिवालय की ओर बढ़े। हालांकि पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक दिया, जिसके बाद वक्ताओं ने वहीं विरोध प्रदर्शन किया।
ये शाखाएं ‘पेड़ों के कब्रिस्तान’ से लाई गई थीं, जिसे दो साल पहले सहस्रधारा रोड से स्थानांतरित करने के बाद राजीव गांधी क्रिकेट स्टेडियम के पास के इलाके में फिर से लगाया गया था। ये सभी पेड़ कभी पनप नहीं पाए और सूख गए।
इस अवसर पर जाने-माने समाजसेवी अनूप नौटियाल ने कहा कि दून घाटी में किसी भी परियोजना के लिए वन भूमि के हस्तांतरण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, ताकि और अधिक पेड़ न काटे जाएं। उन्होंने कहा कि ऋषिकेश-देहरादून मार्ग के प्रस्तावित चौड़ीकरण के लिए 3,000 से अधिक पेड़ों को काटा जाना है, ताकि इन शहरों के बीच यात्रा का समय 15 मिनट कम हो। श्री नौटियाल ने कहा, “चिपको आंदोलन की शुरुआत 51 साल पहले उत्तराखंड में हुई थी। अब देश के इतिहास में पहली बार देहरादून में इस तरह की शवयात्रा निकाली गई है। इससे पूरे देश में पर्यावरण के प्रति जागरूकता की अलख जगेगी।”
इस अवसर पर ज्योत्सना, अजय शर्मा और करण आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राज्य गठन के बाद से बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की गई है, जिससे देहरादून की आबोहवा पर बहुत बुरा असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि पहले लोग अच्छी आबोहवा के लिए दिल्ली से देहरादून आते थे, लेकिन अब यहां की स्थिति भी खराब होती जा रही है।
एक साल पहले भी इसी आंदोलन के जरिए गढ़ी कैंट रोड के चौड़ीकरण के लिए पेड़ों की कटाई का विरोध किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को अपने कदम पीछे खींचते हुए यह घोषणा करनी पड़ी थी कि अब पेड़ नहीं काटे जाएंगे।