
पटना, 9 जून 2025
बिहार में आरक्षण का मुद्दे अब राजनीतिक घमासान में बदलता जा रहा है। बीते दिनों राजद नेता तेजस्वी यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आरक्षण के चलते एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने अनुरोध किया था कि बिहार के बढ़े हुए आरक्षण कोटे को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कदम उठाएं। पर इस पत्र को लेकर अभी तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोई जवाब नहीं दिया। अब इसी को लेकर तेजस्वी यादव ने बिहार सरकार और नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोला और कहा कि वो जानबूझ कर उनके पत्र की अनदेखी कर रहें हैं।
सोमवार को एक्स पर एक पोस्ट में तेजस्वी ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाया। यादव ने पूछा, “क्या नीतीश कुमार ने मेरे पत्र का जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि उनके पास इसका जवाब नहीं है? या यह उनका सामान्य तरीका है? या शायद अधिकारियों ने इस बारे में उनके संज्ञान में ही नहीं लाया?” यादव ने पिछली महागठबंधन सरकार द्वारा पारित एससी, एसटी, ओबीसी और ईबीसी समुदायों के लिए 65 प्रतिशत आरक्षण कोटा के लिए संवैधानिक संरक्षण हासिल करने में देरी पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि 9वीं अनुसूची में शामिल किए जाने से कोटा न्यायिक जांच से बच जाएगा।
महागठबंधन सरकार में बढ़ाई गई 65% आरक्षण सीमा को अपनी ही सरकार में संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने में घोर विफल रहे मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी को पत्र लिखा है।
बाक़ी हमने जो करना है वो हम करेंगे। दलित-आदिवासी, पिछड़ा-अतिपिछड़ा वर्गों का वोट लेकर RSS-BJP की पालकी ढो… pic.twitter.com/xD0a9oWQID
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 5, 2025
तेजस्वी ने न केवल नीतीश कुमार बल्कि एनडीए के सहयोगी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा पर निशाना साधते हुए कहा, “सामाजिक न्याय का बखान करने वाली पार्टियां 65 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं करवा पाईं। क्या राजनीति केवल सत्ता से चिपके रहने के लिए है?” उन्होंने इन नेताओं की सामूहिक राजनीतिक इच्छाशक्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर कार्रवाई करने के लिए राजी करने में विफल रहे हैं। “अगर सामाजिक न्याय के ये तथाकथित चैंपियन प्रधानमंत्री को राजी नहीं कर सकते, तो उनकी विश्वसनीयता क्या बची है?”
तेजस्वी ने एक कदम और आगे बढ़कर नीतीश कुमार को विधायी कार्रवाई करने की चुनौती दी। उन्होंने कहा, “अगर मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के सामने यह मुद्दा नहीं उठा सकते, तो उन्हें कम से कम बिहार विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र बुलाना चाहिए। लोगों को देखना चाहिए कि सामाजिक न्याय के लिए कौन खड़ा है।”
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आरक्षण कोटा का मुद्दा एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनकर उभर रहा है। महागठबंधन सरकार ने आरक्षण को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने वाला विधेयक पारित कर दिया था, लेकिन 9वीं अनुसूची में इसे शामिल न किए जाने के कारण यह कानूनी रूप से कमजोर बना हुआ है।






