नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दायर एक संदर्भ का जवाब दिया है जिसमें यह स्पष्ट करने की मांग की गई थी कि क्या अदालतें राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर एक निश्चित समय सीमा के भीतर निर्णय देने का निर्देश दे सकती हैं। पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर उनकी राय मांगी है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रमनाथ, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की पीठ ने मंगलवार को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस मामले की सुनवाई की। प्रेसिडेंशियल रेफरेंस में यह सवाल उठाया गया था कि क्या अदालतें संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया पर समय-सीमाएँ लगा सकती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों से एक सप्ताह के भीतर इस पर अपनी राय देने को कहा है। न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस मामले पर केंद्र और राज्यों दोनों का विचार होना चाहिए।
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को स्पष्ट किया, “संविधान की व्याख्या में कुछ समस्याएं हैं। उन्हें 29 जुलाई तक अपनी राय व्यक्त करनी चाहिए।” अदालत ने कहा कि सभी राज्यों और स्थायी वकीलों को ईमेल के ज़रिए नोटिस भेजे जाएँगे। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमण और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत की सहायता करेंगे। यह प्रेसिडेंशियल रेफरेंस तमिलनाडु के राज्यपाल के मामले में 8 अप्रैल को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आया है।
इसमें अदालत ने निर्देश दिया था कि राज्यपाल तीन महीने के भीतर विधेयकों पर फैसला लें और राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर भी तीन महीने के भीतर फैसला लिया जाए। प्रेसिडेंशियल रेफरेंस ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह फैसला असंवैधानिक है या नहीं।