लखनऊ, 1 दिसंबर 2025:
यूपी में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की जांच प्रक्रिया को अधिक संवेदनशील और पारदर्शी बनाने के लिए एक अहम निर्णय लिया गया है। हाईकोर्ट के निर्देशों के पालन में डीजीपी राजीव कृष्ण ने प्रदेशभर की पुलिस इकाइयों को विस्तृत दिशा-निर्देश दिए हैं। इसमें कहा गया है कि अब किसी भी पीड़ित महिला का बयान केवल महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा ही दर्ज किया जाएगा। इसके साथ ही बयान दर्ज किए जाने के दौरान उसकी वीडियोग्राफी भी अनिवार्य रूप से कराई जाएगी।
यह कदम तब उठाया गया है जब हाईकोर्ट के अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता ने अक्टूबर माह में भेजे गए पत्र में बताया कि अदालत के सामने लगातार ऐसे मामले आ रहे हैं जिनमें महिला पीड़ितों का बयान पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा लिया जा रहा है। ये नियमों के खिलाफ है। इतना ही नहीं कई मामलों में गवाहों के बयानों पर उनके हस्ताक्षर तक लिए जा रहे हैं, जबकि यह प्रक्रिया कानूनन वर्जित है।
डीजीपी ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNS) में बयान दर्ज करने को लेकर जो निर्धारित प्रावधान का पालन न करना गंभीर लापरवाही माना जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि जांच प्रक्रिया में की गई ऐसी त्रुटियों का सीधा फायदा अभियुक्तों को मिलता है। इससे पीड़िता को न्याय मिलने में कठिनाई होती है और कई मामलों में अपराधी सजा से बच निकलते हैं।
जारी निर्देशों के अनुसार महिला पीड़ित का बयान उसके घर पर या उसके द्वारा बताए गए किसी सुरक्षित और सुविधाजनक स्थान पर लिया जा सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बयान निष्पक्ष और दबावमुक्त हो उसकी पूरी रिकॉर्डिंग भी की जाएगी। साथ ही जांच के दौरान गवाहों के बयान पर हस्ताक्षर नहीं लिए जाएंगे, क्योंकि कानून में इसका कोई प्रावधान नहीं है। यह गवाही की शुचिता को प्रभावित कर सकता है।
पुलिस हेडक्वार्टर ने सभी अधिकारियों को यह भी आगाह किया है कि यदि इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया, तो संबंधित अफसरों पर कार्रवाई होगी। निर्देशों को तत्काल प्रभाव से लागू करने को कहा गया है ताकि महिला अपराध मामलों की जांच अधिक संवेदनशील, पारदर्शी और न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप हो सके।






