
वाराणसी, 16 अक्टूबर 2024:
अंशुल मौर्य
“यशो मां लक्खी, बोसो मां लक्खी, ठाको मां लक्खी.. अमार घरे” – जिसका अर्थ है, “मां लक्ष्मी हमारे घर आओ, हमारे घर में रहो, हमारे घर में बैठो,” इस आह्वान के साथ वाराणसी में बंग समाज के घरों में कोजागरी लक्ष्मी पूजा की शुरुआत हो चुकी है। हर वर्ष की तरह, इस बार भी 16 अक्टूबर को बंगाली परिवारों में कोजागरी लक्ष्मी नारायण की पूजा का आयोजन किया जा रहा है, जो दुर्गा पूजा के बाद आने वाली प्रमुख पूजा है।
कोजागरी लक्ष्मी पूजा बंगाली परिवारों में विशेष स्थान रखती है और इसे धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है। इस दिन परिवारजन मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर उन्हें नारियल और गुड़ से बने “नारकोले नाडू” का भोग अर्पित करते हैं, जो विशेष प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है। इसके अलावा, मां लक्ष्मी को खिचड़ी, पूड़ी, खीर और तली हुई पांच प्रकार की सब्जियों का भी भोग लगाया जाता है। इन सब्जियों में आलू, बोड़ा, कद्दू, परवल और बैंगन प्रमुख रूप से शामिल होते हैं।

बंग समाज के पूजा पंडालों में भी विशेष आयोजन
वाराणसी में बंगाली समुदाय की सक्रियता के साथ, कोजागरी पूजा के लिए कई प्रमुख स्थानों पर विशेष पूजा पंडालों में मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित की गई है। जिन स्थानों पर पूजा के आयोजन किए गए हैं उनमें भेलूपुर के जिम स्पोर्टिंग क्लब, शारदोत्सव संघ भेलूपुर, वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलिनी, ईगल क्लब जंगमबाड़ी, यंग ब्वायज क्लब पांडेय धर्मशाला, और काशी दुर्गोत्सव सम्मिलिनी (केडीएस) शिवाला प्रमुख हैं। इन पंडालों में श्रद्धालु पूरे विधि-विधान के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करेंगे।
बंग समाज के अनुसार, कोजागरी पूजा लक्ष्मी नारायण की विशेष पूजा होती है, जो दुर्गा पूजा के बाद पहली पूजा मानी जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी के आह्वान के साथ उन्हें धन और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है। पंडालों में मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर पूजा की जाती है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं और अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।
इस तरह वाराणसी में बंग समाज ने कोजागरी लक्ष्मी पूजा की तैयारी पूरी कर ली है, और आज पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ यह पूजा मनाई जा रही है।