नई दिल्ली, 21 फरवरी 2025
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 14 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने के आरोप में आप सांसद स्वाति मालीवाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि मालीवाल का यह दावा कि उन्हें अभियोजन से संरक्षण प्राप्त है, क्योंकि उन्होंने सद्भावनापूर्वक कार्य किया था, उचित स्तर पर साबित करना होगा तथा वर्तमान याचिका में कार्यवाही बंद करने का कोई आधार नहीं है।
दिल्ली पुलिस ने 2016 में मालीवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जब वह दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष थीं। पुलिस ने कहा था कि किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों का खुला उल्लंघन हुआ है, जो यौन अपराध की नाबालिग पीड़िता की पहचान की रक्षा करता है।
अदालत ने 13 फरवरी को कहा, “प्रथम दृष्टया, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 74 के साथ धारा 86 के तहत अपराध स्पष्ट रूप से सामने आता है। जहां तक याचिकाकर्ता के इस दावे का सवाल है कि उसे सद्भावनापूर्वक किए गए कार्यों के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 100 के तहत संरक्षण प्राप्त है, तो यह उसका बचाव है जिसे उचित स्तर पर कानून के अनुसार साबित किया जाना आवश्यक है।”
न्यायाधीश ने कहा, “इसलिए, प्राथमिकी और कार्यवाही को रद्द करने का कोई आधार नहीं है…” मालीवाल ने मामले में अदालत की निगरानी में जांच की मांग करते हुए कहा कि नाबालिग की मौत के बावजूद पुलिस ने प्राथमिकी में हत्या का आरोप नहीं लगाया।
अदालत ने कहा कि यह प्रार्थना निरर्थक है, क्योंकि घटना से संबंधित दोनों मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है तथा मामले की सुनवाई लंबित है। अदालत ने कहा कि अब इन पर विचार करना निचली अदालत का काम है और आगे की जांच एसआईटी को सौंपने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
नाबालिग लड़की की 23 जुलाई 2016 को एक अस्पताल में मृत्यु हो गई थी, जब उसके पड़ोसी ने उसका यौन उत्पीड़न किया था। पड़ोसी ने कथित तौर पर उसके गले में संक्षारक पदार्थ डाल दिया था और उसके आंतरिक अंगों को क्षतिग्रस्त कर दिया था। पुलिस ने कहा कि मालीवाल ने क्षेत्र के पुलिस उपायुक्त को एक नोटिस भेजा था, जिसमें उन्होंने बलात्कार मामले की जांच के बारे में जानकारी मांगी थी। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को दिए गए नोटिस में कथित तौर पर पीड़िता का नाम भी शामिल था। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि नोटिस को जानबूझकर विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों पर प्रसारित किया गया तथा टीवी चैनलों पर दिखाया गया। पीड़िता के माता-पिता द्वारा उसका नाम उजागर करने की सहमति होने के कारण, भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए (पीड़िता की पहचान उजागर करने पर प्रतिषेध) को हटा दिया गया तथा मामले में किशोर न्याय अधिनियम की धारा 74 को जोड़ दिया गया।