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30 साल बाद… जब दुश्मन ने कहा “I salute your son”, जानिए भारत के एक शहीद की रूला देने वाली कहानी

सिर्फ 21 साल की उम्र में सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने 1971 की जंग में अपने टैंक से अकेले 10 दुश्मन टैंक तबाह कर दिए। शहादत के 30 साल बाद वही पाकिस्तानी अफसर, जिसने उनसे लड़ाई की थी, उनके पिता से मिला और कहा— I salute your son… वो सच्चा हीरो था।

नई दिल्ली, 5 नवंबर 2025 :

कभी-कभी कुछ कहानियां सिर्फ इतिहास नहीं बनतीं, बल्कि दिलों में अमर हो जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है परमवीर चक्र विजेता सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की—जिसकी बहादुरी को दुश्मन ने भी सलाम किया। 1971 की भारत-पाक युद्ध में अरुण ने सिर्फ 21 साल की उम्र में वो कर दिखाया, जो आज भी हर भारतीय के दिल में गर्व भर देता है।

जंग का मैदान और एक जवान का जज्बा

साल था 1971। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध अपने चरम पर था। पश्चिमी मोर्चे पर शकरगढ़ सेक्टर एक अहम जगह बन गया था। पाकिस्तान का मकसद था—भारत की सप्लाई लाइन काट देना। इसी बीच, 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट के एक जवान ने कमान संभाली-सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल।

उनकी उम्र सिर्फ 21 साल थी, लेकिन हौसला ऐसा जैसे किसी पुराने जंगजू का हो। सामने पाकिस्तान की एक पूरी टैंक ब्रिगेड थी, जिनके पास थे अमेरिका के पैटन टैंक। लेकिन अरुण पीछे हटना नहीं जानते थे। उन्होंने अपने सेंचुरियन टैंक से दुश्मनों पर सीधा वार किया — और अकेले ही 10 टैंक तबाह कर दिए।

जब उनका टैंक भी आग में घिर गया, तो कमांडर ने रेडियो पर आदेश दिया — “Back off, Arun!” पर अरुण का जवाब था — “No sir, I will not abandon my tank. My gun is still working.” ये वो आखिरी शब्द थे, जो आज भी सेना में जोश भर देते हैं।

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A touching story of an Indian martyr

आखिरी पल और अमर वीरता

जंग के मैदान में अरुण ने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। एक गोला उनके टैंक के कपोला को चीरता हुआ उनके शरीर में आ लगा। पेट बुरी तरह जख्मी हुआ, लेकिन उन्होंने ट्रिगर नहीं छोड़ा। कुछ ही पलों बाद वो शहीद हो गए। 16 दिसंबर 1971, यही वो दिन था जब भारत ने युद्ध जीता — और अरुण खेत्रपाल ने अपनी जिंदगी देश को समर्पित कर दी।

पिता तक पहुंची खबर… और एक खामोश घर

घर में उनके पिता ब्रिगेडियर एम.एल. खेत्रपाल उस वक्त दाढ़ी बना रहे थे। उन्हें अजीब सा अंदेशा हो रहा था कि कुछ होने वाला है। तभी दरवाजे की घंटी बजी। बाहर एक postman खड़ा था। पोस्टमैन ने एक टेलीग्राम थमाया — “हम अत्यंत खेद के साथ सूचित करते हैं कि आपके पुत्र सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल 16 दिसंबर को युद्ध में शहीद हो गए।” वो पल किसी भी पिता के लिए असहनीय था। पर ब्रिगेडियर खेत्रपाल ने सिर ऊंचा रखा — क्योंकि उन्होंने एक ऐसा बेटा पैदा किया था जो देश के लिए जिया और देश के लिए ही गया।

30 साल बाद… जब दुश्मन ने कहा “I salute your son”

30 साल बाद, जब ब्रिगेडियर एम.एल. खेत्रपाल 81 साल की उम्र में अपनी जन्मभूमि सरगोधा (अब पाकिस्तान) देखने लाहौर गए, तो एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर उनसे मिलने आया। उसका नाम था ब्रिगेडियर ख्वाजा मोहम्मद नासेर — वही व्यक्ति जिसने युद्ध के मैदान में अरुण से आमना-सामना किया था। नासेर ने कहा,“आपका बेटा मेरे हाथों मारा गया, लेकिन वो एक बहादुर सैनिक था। उसने बिना अपनी जान की परवाह किए हमारा मुकाबला किया। मुझे अफसोस है कि वो चला गया, लेकिन मैं आपके बेटे को और आपको सलाम करता हूं।”

इन शब्दों को सुनकर ब्रिगेडियर खेत्रपाल की आंखें भर आईं, लेकिन उनके चेहरे पर गर्व झलक रहा था। दुश्मन ने उस बेटे को सम्मान दिया — जो मर कर भी अमर हो गया।

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A touching story of an Indian martyr

21 की उम्र में ‘सबसे इक्कीस’

अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे में हुआ था। उनके पिता पहले से ही सेना में थे, इसलिए बचपन से ही देशभक्ति उनके अंदर थी। जब वो सिर्फ 21 साल के थे, तब उन्हें 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट में सेकंड लेफ्टिनेंट की पोस्ट मिली। और बस, इसी उम्र में उन्होंने वो कर दिखाया जो सदियों तक याद रहेगा। कहा जाता है — “अरुण 21 की उम्र में भी सबसे ‘इक्कीस’ थे।”

अब उनकी कहानी बड़े पर्दे पर

अरुण की कहानी अब एक फिल्म ‘इक्कीस’ (Ikkis) के ज़रिए आने वाली है।
इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के नाती आदित्य नंदा अरुण की भूमिका निभा रहे हैं।
फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं शूजीत सरकार, और यह 25 दिसंबर को रिलीज़ होगी।

अमिताभ बच्चन ने सोशल मीडिया पर फिल्म का पोस्टर शेयर करते हुए लिखा — “यह कहानी सिर्फ एक सैनिक की नहीं, एक बेटे की है, जिसने अपने देश के लिए सबकुछ कुर्बान कर दिया।”

एक तस्वीर, जो सबकुछ कह गई

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, जब ब्रिगेडियर खेत्रपाल भारत लौटे, तो उन्हें उनकी और ब्रिगेडियर नासेर की एक फोटो मिली। उस फोटो के पीछे लिखा था —“शहीद अरुण खेत्रपाल, परमवीर चक्र। जो 16 दिसंबर 1971 को जीत और असफलता के बीच एक चट्टान की तरह खड़ा रहा।” यह लिखने वाला कोई भारतीय नहीं, बल्कि वही पाकिस्तानी अफसर था जिसने उनसे लड़ाई लड़ी थी।

एक बेटे का नाम, जो अमर हो गया

आज भी जब भारतीय सेना में नए अफसर ट्रेनिंग लेते हैं, तो लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का नाम आदर और गर्व से लिया जाता है। उनकी कहानी सिखाती है कि वीरता सिर्फ गोलियों से नहीं, हौसले से होती है। और जब बात देश की हो, तो उम्र मायने नहीं रखती —क्योंकि सच्चे हीरो 21 की उम्र में भी ‘इक्कीस’ होते हैं।

यह सिर्फ एक शहीद की कहानी नहीं, बल्कि एक पिता की, एक बेटे की और एक ऐसी इंसानियत की कहानी है जिसने सीमाओं से ऊपर उठकर सम्मान की मिसाल कायम की।
अरुण खेत्रपाल आज भी जिंदा हैं — हर भारतीय के दिल में, हर तिरंगे के साथ लहराते हुए।

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