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बुध प्रदोष व्रत पर बन रहा है सौभाग्य का योग, जानिए क्या है शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

आज साल का अंतिम बुध प्रदोष व्रत रखा जा रहा है, जिसमें प्रदोष काल शाम 5 बजकर 27 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है

लखनऊ, 17 दिसंबर 2025 :

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है। हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को यह व्रत रखा जाता है, जिसमें भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं। वर्ष का अंतिम प्रदोष व्रत होने के कारण इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

आज रखा जा रहा है साल का अंतिम प्रदोष व्रत

पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 16 दिसंबर की रात 11 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 18 दिसंबर 2025, गुरुवार रात 2 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि और प्रदोष काल की गणना के अनुसार साल का अंतिम प्रदोष व्रत 17 दिसंबर यानी आज रखा जा रहा है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करने से जीवन में सौभाग्य और समृद्धि का योग बनता है।

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बुध प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त क्या है?

बुधवार को पड़ने के कारण यह व्रत बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है, जिसे व्यापार, नौकरी और करियर में उन्नति देने वाला माना गया है। आज प्रदोष काल शाम 5 बजकर 27 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है, जिसमें की गई पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।

प्रदोष व्रत की धार्मिक मान्यता क्या है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत रखने से जीवन के संकट और दोष धीरे धीरे समाप्त होने लगते हैं। इस दौरान शिवलिंग पर जल, दूध, बेल पत्र, फूल और धूप दीप अर्पित करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु लगातार 11 प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके सभी दुख, पाप और कष्ट दूर होते हैं। विवाह की इच्छा रखने वाली कन्याओं को इस दिन माता पार्वती को लाल चुनरी अर्पित करने की सलाह दी जाती है।

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प्रदोष व्रत की सरल पूजा विधि क्या है?

प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर या शिवालय में शिवलिंग का गंगाजल, दूध, दही, शहद और बेल पत्र से अभिषेक करें। इसके बाद चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। शाम के समय पुनः स्नान कर प्रदोष काल में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और “ॐ नमः शिवाय” या महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती कर भोग लगाएं और प्रसाद ग्रहण करें।

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