
कानपुर,13 नवंबर 2024
कानपुर में क्लाइमेट चेंज के कारण खस की घास से निकलने वाले तेल का उत्पादन घट गया है। 2023 में हाथरस बेल्ट में खस तेल उत्पादन में 20% की गिरावट आई, जबकि कन्नौज में यह आंकड़ा एक तिहाई तक पहुंच गया। सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) के डायरेक्टर शक्ति विनय शुक्ला के अनुसार, अनिश्चित मौसम और गर्मी के कारण खस और पचौली के पौधों से निकलने वाला तेल कम हुआ, जिससे इत्र, परफ्यूम और अन्य उत्पादों की कीमतें बढ़ गई हैं। 2022 तक खस तेल का उत्पादन सामान्य था, लेकिन 2023 में स्थिति बदल गई।
हाथरस के इत्र कारोबारी लव शर्मा के अनुसार, 2022 में एक क्विंटल खस घास से 100 ग्राम तेल निकलता था, लेकिन 2023 में यह घटकर 80 ग्राम रह गया। इस साल भी गर्मी का असर देखने को मिलेगा। कन्नौज के इत्र एक्सपोर्टर प्रांजुल कपूर ने बताया कि मौसम का असर इत्र/परफ्यूम कारोबार पर पड़ा है, लेकिन इसके अलावा खस की फसल में ज्यादा उपज लेने की चाह भी वजह है। पहले माना जाता था कि खस की अच्छी उपज के लिए घास की जड़ को तीन साल तक नहीं तोड़ा जाना चाहिए।
खस की तेल उत्पादन प्रक्रिया में बदलाव के कारण इसकी कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। पहले खस की अच्छी उपज के लिए जड़ों को तीन साल तक न तोड़ने की सलाह दी जाती थी, ताकि तेल का उत्पादन बढ़िया होता, लेकिन बढ़ती मांग के कारण अब उत्पादक इसे जल्दी तोड़ रहे हैं। कन्नौज में गुलाब और बेला के फूलों से भी कम तेल निकल रहा है। अब भारत दुनिया का प्रमुख स्रोत बन गया है, क्योंकि हैती और डॉमिनिकन रिपब्लिक से खस की सप्लाई बंद हो गई है। ‘रूह खस’ तेल की कीमत अब 80,000 रुपये/किलो तक पहुंच गई है, जबकि साधारण खस तेल 23,000 रुपये/किलो तक बिक रहा है। पचौली के तेल की कीमत भी क्लाइमेट चेंज के कारण बढ़कर 16,000-19,000 रुपये/किलो तक पहुंच गई है, जो दो साल पहले केवल 3,500-4,000 रुपये/किलो हुआ करती थी।