मुंबई, 10 जुलाई 2025
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते दिन एक अहम फैसला देते हुए स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने नाबालिग बच्चे का डीएनए परीक्षण सिर्फ इसलिए करवाना सही फैसला नहीं है क्योंकि उसे अपनी पत्नी पर चरित्र का शक है।
बता दे कि हाल ही में एक व्यक्ति ने चरित्र के संदेह में अपने बेटे का डीएनए परीक्षण और उससे तलाक की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। डीएनए परीक्षण का आदेश देने वाली फैमिली कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया।
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस आरएम जोशी ने कहा कि डीएनए परीक्षण कराने के आदेश केवल असाधारण मामलों में ही दिए जा सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई व्यक्ति सिर्फ इसलिए डीएनए परीक्षण नहीं करा सकता क्योंकि उसकी पत्नी व्यभिचार कर रही है। याचिका दायर करने वाले व्यक्ति ने कहा कि उनका 2011 में विवाद हुआ था और वे 2013 से अलग रह रहे हैं। हालाँकि, उनकी पत्नी पहले से ही तीन महीने की गर्भवती थी। 2020 में फैमिली कोर्ट ने इस मामले में बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने का आदेश दिया था।
जब इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, तो सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुझाव दिया कि व्यभिचार साबित करने वाले अन्य सबूतों का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, इसने स्पष्ट किया कि नवजात बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसमें कहा गया कि नाबालिग बच्चा माता-पिता के बीच झगड़े का कारण बन रहा है और अदालत ऐसी स्थिति में बच्चे के अधिकारों की रक्षा करेगी। इसमें यह भी बताया गया कि जबरन डीएनए परीक्षण वैध नहीं है क्योंकि बच्चा सहमति देने लायक उम्र का नहीं है।