नई दिल्ली, 26 फरवरी 2025
तमिल अभिनेता-राजनेता विजय ने बुधवार को सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच चल रहे ‘हिंदी थोपने’ के विवाद की आलोचना की और उनके झगड़े की तुलना “किंडरगार्टन के छात्रों के बीच लड़ाई” से की।
महाबलीपुरम में अपनी पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (टीवीके) के प्रथम वर्षगांठ समारोह में बोलते हुए विजय ने दोनों पार्टियों पर भाषा के मुद्दे को महत्वहीन बनाने और इस मामले पर गुप्त रूप से “सेटिंग” (गुप्त समझौता) बनाए रखने का आरोप लगाया।
अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित उम्मीदवार माने जा रहे तमिल सुपरस्टार ने दोनों पार्टियों पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और त्रिभाषा फार्मूले को लेकर टकराव पैदा करने का आरोप लगाया।
“एक गाता है, दूसरा नाचता है – दोनों एकदम ताल में हैं। यह कोई वास्तविक लड़ाई नहीं है, बल्कि यथास्थिति बनाए रखने का प्रदर्शन है। इस बीच, लोगों की चिंताओं को अनदेखा किया जाता है,” विजय ने कहा, ” तमिलनाडु के लोग समझदार हैं। उन्हें इस बारे में शिक्षित होने की आवश्यकता नहीं है – वे पहले से ही भाषा के मुद्दे पर भाजपा -डीएमके ‘सेटिंग’ के बारे में जानते हैं।” उन्होंने गंभीर नीतिगत बहसों को सोशल मीडिया पर महज “हैशटैग प्रतियोगिताओं” तक सीमित करने के लिए दोनों पार्टियों की आलोचना की। अभिनेता ने अपने खास अंदाज में कहा, “क्या भाई, यह बहुत गलत है भाई,” जिस पर वहां मौजूद लोगों ने खूब ठहाके लगाए और तालियां बजाईं।
हिंदी नीति पर विजय का हमला
विजय ने दूसरी भाषा थोपे जाने के प्रति टीवीके का कड़ा विरोध दोहराया तथा इसे संघीय सिद्धांतों और तमिलनाडु के आत्मसम्मान का उल्लंघन बताया।
उन्होंने कहा, “हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं। कोई भी व्यक्ति चाहे तो कोई भी भाषा सीख सकता है – यह उसका अधिकार है। लेकिन हम पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जा सकती।” उन्होंने अपने भाषण में हिंदी का नाम लेने से परहेज किया।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब ऐसी खबरें आईं कि अगर तमिलनाडु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और इसके तीन-भाषा फॉर्मूले को अपनाने से इनकार करता है तो केंद्र सरकार शिक्षा निधि रोक सकती है। डीएमके ने जवाबी कार्रवाई की और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने एक और ‘भाषा युद्ध’ लड़ने की कसम खाई।
आखिर क्या है विवाद?
तमिलनाडु में तीन-भाषा के फॉर्मूले का विरोध कोई नई बात नहीं है। 1960 के दशक से ही राज्य ने तमिल और अंग्रेजी की अपनी दो-भाषा नीति को बरकरार रखा है और हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर थोपे जाने का विरोध किया है।
“भाषा युद्ध” का तात्पर्य 1965 में डीएमके के हिंदी विरोधी आंदोलन से है, जब द्रविड़ पार्टी ने तमिल लोगों पर कथित रूप से हिंदी भाषा थोपे जाने के खिलाफ सफलतापूर्वक अभियान चलाया था।
त्रि-भाषा नीति को लागू करने वाले केंद्रीय विद्यालयों का नेटवर्क, नवोदय विद्यालय, व्यापक विरोध के कारण तमिलनाडु में स्थापित नहीं किया जा सका है।
हालांकि, विजय ने दोनों दलों के आक्रोश को राजनीतिक नाटक करार देते हुए दावा किया कि लोगों को गुमराह करने के लिए उनका टकराव रचा गया है।