नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025
अपने सरकारी आवास में जले हुए नोटों के बंडल मिलने के मामले में कार्रवाई का सामना कर रहे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने यह फैसला तब लिया जब केंद्र ने साक्ष्यों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय की जांच समिति के फैसले को ध्यान में रखते हुए उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की सिफारिश की। वर्मा ने इस आशय की एक याचिका देश की सर्वोच्च अदालत में दायर की। उन्होंने याचिका में कहा कि इस मामले में कानून के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना ने पूरी और पारदर्शी जांच किए बिना एकतरफा जांच समिति गठित कर दी थी। इस मौके पर न्यायमूर्ति वर्मा ने तीन न्यायाधीशों वाली जांच समिति की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि यह जांच एक व्यक्ति और एक संवैधानिक कार्यकर्ता के रूप में उनके अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा की गई महाभियोग की सिफारिश को रद्द किया जाए। न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि जांच समिति ने अपनी जांच समिति के निष्कर्षों के आधार पर पूरी कर ली, तथा गलत तरीके से सबूत का भार उन पर डाल दिया, तथा वे उन तथ्यों को झूठा साबित कर सकते हैं जिन्हें समिति ने सही माना था।
गौरतलब है कि उन्होंने यह याचिका ऐसे समय दायर की है जब अगले दो-तीन दिनों में संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है और केंद्र सरकार वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश कर सकती है। इस प्रस्ताव के लिए सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कहा कि यह प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया जाएगा।
इसके अलावा, न्यायमूर्ति वर्मा का यह निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिल्ली पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय को प्राथमिकी दर्ज करने और न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से भारी मात्रा में बेहिसाबी नकदी जब्त किए जाने के मामले की गहन जांच करने के निर्देश देने की मांग वाली एक नई याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत होने के कुछ ही दिनों बाद आया है।
आखिर क्या? है नोटों के बंडलों वाला मामला :
बता दे कि इस साल के शुरूआत के महीने मार्च में, दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई थी और एक कमरे से भारी मात्रा में नकदी और कुछ आंशिक रूप से जली हुई नकदी बरामद हुई थी। यह एक बड़ा विवाद था और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर तीखी बहस छिड़ गई थी। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे। इसी मामले में, उसी महीने की 28 तारीख को, सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने वर्मा का तबादला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें न्यायिक कार्यभार नहीं सौंपा और घटना की जाँच के लिए तीन न्यायाधीशों की एक जाँच समिति नियुक्त की।