Entertainment

परेश रावल के बयान से फिल्मी गलियारे में मची हलचल, इन अवॉर्ड्स की सच्चाई पर खोला बड़ा राज!

दिग्गज अभिनेता परेश रावल ने अवॉर्ड्स की दुनिया पर बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि नेशनल अवॉर्ड से लेकर ऑस्कर तक, हर जगह लॉबिंग (Lobbying) का असर दिखता है।

मुंबई, 3 नवम्बर 2025:

बॉलीवुड के सीनियर एक्टर परेश रावल इन दिनों अपनी फिल्म ‘The Taj Story’ को लेकर चर्चा में हैं। फिल्म रिलीज के साथ ही उनके हालिया Podcast Interview ने भी सुर्खियाँ बटोरी हैं। राज शमनी के पॉडकास्ट में बातचीत के दौरान परेश रावल ने National Awards, Oscar Awards और फिल्म इंडस्ट्री में होने वाली Lobbying पर खुलकर बात की। उनके बयानों ने न सिर्फ फिल्मी गलियारों में हलचल मचा दी, बल्कि एक गंभीर चर्चा को भी जन्म दिया —क्या सच में अवॉर्ड सिर्फ टैलेंट से नहीं, बल्कि नेटवर्किंग और लॉबिंग से भी मिलते हैं?

नेशनल अवॉर्ड्स में भी थोड़ी बहुत लॉबिंग होती है

परेश रावल ने साफ शब्दों में कहा कि, “मुझे अवॉर्ड्स की अंदरूनी प्रक्रिया की ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि नेशनल अवॉर्ड्स में भी थोड़ी बहुत लॉबिंग होती होगी। बाकी के अवॉर्ड्स में जितनी लॉबिंग होती है, उतनी यहां नहीं। लेकिन हां, पूरी तरह से इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता।” उन्होंने आगे कहा कि National Awards की प्रतिष्ठा बाकी अवॉर्ड शोज़ से काफी ऊपर है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वहां कोई influence नहीं होता। उनके मुताबिक, इंडस्ट्री में कुछ लोग और प्रोडक्शन हाउस अपने टैलेंटेड कलाकारों को “Push” करने की कोशिश करते हैं — जो एक तरह की लॉबिंग ही होती है।

Oscar में भी लॉबिंग होती है… और वो बहुत बड़े स्तर पर

परेश रावल ने सिर्फ भारत तक बात सीमित नहीं रखी। उन्होंने खुलकर कहा — “ये सिर्फ हमारे देश में नहीं होता, बाहर भी होता है। Oscar Awards में भी लॉबिंग होती है। वहां बड़ी-बड़ी पार्टियाँ होती हैं, मीडिया कैंपेन चलते हैं, और कई बार अवॉर्ड जीतने के लिए पूरी Strategy बनाई जाती है।” उन्होंने बताया कि Academy Members को इंप्रेस करने के लिए फिल्ममेकर्स स्पेशल स्क्रीनिंग रखते हैं, डिनर पार्टियाँ आयोजित करते हैं, और पब्लिसिटी में करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। यानी दुनिया के सबसे बड़े अवॉर्ड्स में भी Influence और Image Building का खेल चलता है।

WhatsApp Image 2025-11-03 at 3.28.06 PM
Paresh Rawal’s Bold Statement Shakes Film Industry

मेरे लिए असली अवॉर्ड है डायरेक्टर और ऑडियंस की सराहना

परेश रावल ने यह भी कहा कि उन्हें किसी अवॉर्ड या ट्रॉफी की दौड़ में दिलचस्पी नहीं। “मेरे लिए असली अवॉर्ड तब होता है जब मेरा डायरेक्टर, को-एक्टर या ऑडियंस कहे कि ‘वाह, आपने कमाल कर दिया’।
वही मेरे लिए नेशनल अवॉर्ड से भी बड़ा है।”

उन्होंने बताया कि करियर की शुरुआत में जब उन्हें 1993 में ‘छोकरी’ और ‘सर’ फिल्मों के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला, तब उन्हें बहुत खुशी हुई थी —
लेकिन अब वे किसी ट्रॉफी से ज्यादा इमानदारी से काम करने में यकीन रखते हैं।

The Taj Story’ और ‘थामा’ में दिखा उनका दम

परेश रावल हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘The Taj Story’ में नज़र आए हैं।
यह फिल्म ताजमहल की कहानी पर आधारित है और इसमें परेश एक Guide की भूमिका में हैं। फिल्म रिलीज़ से पहले ही कुछ विवादों में घिर गई थी, लेकिन अब सिनेमाघरों में इसे अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। इसके अलावा, वे हाल ही में दिवाली पर रिलीज हुई आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना की फिल्म ‘Thama’ में भी दिखाई दिए। इस फिल्म में परेश रावल ने आयुष्मान के पिता का किरदार निभाया, जो दर्शकों को काफी पसंद आया।

लॉबिंग क्या होती है और क्यों चर्चा में रहती है?

अब सवाल उठता है कि आखिर Lobbying होती क्या है?
साधारण शब्दों में, लॉबिंग का मतलब है किसी अवॉर्ड या फैसले को अपने पक्ष में करने के लिए बैकग्राउंड में की जाने वाली कोशिशें।
इसमें नेटवर्किंग, पब्लिसिटी, मीडिया इंफ्लुएंस और कभी-कभी पॉलिटिकल कनेक्शन तक शामिल होते हैं। फिल्म इंडस्ट्री में कई बार आरोप लगते रहे हैं कि अवॉर्ड्स सिर्फ परफॉर्मेंस पर नहीं, बल्कि Popularity और PR Connections पर दिए जाते हैं। कई बड़े कलाकार पहले भी इस पर सवाल उठा चुके हैं, जिनमें कंगना रनौत, अजय देवगन, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे नाम शामिल हैं।

नेशनल अवॉर्ड्स बनाम कमर्शियल अवॉर्ड्स

परेश रावल ने अपने बयान में यह भी साफ किया कि National Awards की गरिमा अब भी बाकी सभी अवॉर्ड्स से ऊपर है।
उन्होंने कहा —“बाकी अवॉर्ड्स तो कई बार Entertainment Shows जैसे लगते हैं। लेकिन नेशनल अवॉर्ड्स की बात अलग है। यहां मेहनत और टैलेंट को मान्यता मिलती है, सिर्फ ग्लैमर को नहीं।”

हालांकि उन्होंने यह भी माना कि ‘Zero Lobbying’ जैसी कोई चीज़ अब शायद रह ही नहीं गई। हर जगह थोड़ा-बहुत प्रभाव, पब्लिसिटी और जान-पहचान काम करती है।

परेश रावल के बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस

परेश रावल के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर फैंस और इंडस्ट्री के लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आईं। कई लोगों ने उनकी ईमानदारी और साफगोई की तारीफ की, जबकि कुछ ने सवाल उठाया कि “अगर नेशनल अवॉर्ड्स में भी लॉबिंग है, तो असली टैलेंट को पहचान कौन देगा?”
(X) पर #PareshRawal और #NationalAwards ट्रेंड करने लगे।
कई यूज़र्स ने लिखा —“कम से कम उन्होंने सच बोला, वरना इंडस्ट्री में ज़्यादातर लोग इस पर चुप रहते हैं।”

परेश रावल – एक्टर जो हर किरदार में फिट बैठते हैं

चाहे ‘हेरा फेरी’ के बाबूराव गणपतराव आप्टे हों,या ‘ओह माय गॉड’ के कनजी भाई, या फिर ‘संजू’ में सुनील दत्त का रोल — परेश रावल हर किरदार में अपनी छाप छोड़ते हैं। तीन दशक से ज्यादा का करियर, 200+ फिल्में, और अब भी वही जुनून — यही उन्हें दूसरों से अलग बनाता है।
उनका कहना है —“मैं हर फिल्म को पहली फिल्म की तरह करता हूँ।
अगर मैं खुद को रिपीट करने लगूँ, तो मेरा काम बेकार है।”

कितना पारदर्शी है अवॉर्ड सिस्टम?

परेश रावल के बयान ने एक बार फिर फिल्म इंडस्ट्री में अवॉर्ड्स की पारदर्शिता (Transparency) पर बहस छेड़ दी है।उनकी बातें भले कुछ लोगों को कड़वी लगी हों, लेकिन उन्होंने वो कहा जो ज़्यादातर लोग सोचते तो हैं, पर बोलते नहीं। उनकी बातों का सार यही है —“अवॉर्ड्स मिलना अच्छा है, लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है लोगों का प्यार और सच्ची पहचान।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button