नई दिल्ली, 10 अप्रैल 2025
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि रेलगाड़ी में यात्रा करने वाला यात्री अपने सामान की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है और रेलवे किसी भी चोरी के लिए उत्तरदायी नहीं है, जब तक कि उसके अधिकारियों की ओर से लापरवाही या कदाचार न हो।
न्यायमूर्ति रविन्द्र डुडेजा ने एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह जनवरी 2013 में नई दिल्ली से नागपुर की यात्रा के दौरान तृतीय एसी कोच में यात्रा कर रहा था और उसका बैग, जिसमें उसका लैपटॉप, कैमरा, चार्जर, चश्मा और एटीएम कार्ड थे, चोरी हो गया।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने पहले ही उनकी शिकायत को खारिज कर दिया था, जिसमें सेवाओं में कमी के कारण उत्पीड़न के लिए एक लाख रुपये के अलावा माल की हानि के लिए 84,000 रुपये से अधिक का दावा किया गया था।
उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय आयोग के निर्णय को बरकरार रखा और कहा कि दावा मुख्यतः इस तथ्य पर आधारित था कि परिचारक सो रहा था और असभ्य था, तथा कंडक्टर का पता नहीं चल पा रहा था।
हालांकि, अदालत ने कहा कि इस बात की “एक भनक तक नहीं लगी” कि कोच के दरवाजे किसी अनधिकृत घुसपैठिये द्वारा चोरी करने के लिए खुले छोड़े गए थे।
फैसले में कहा गया कि कंडक्टर की अनुपस्थिति मात्र से सेवा में कमी नहीं मानी जा सकती, जब दरवाजा बंद करने में उसकी विफलता के संबंध में कोई आरोप नहीं है।
फैसले में कहा गया, “चोरी की घटना और कंडक्टर तथा अटेंडेंट की लापरवाही के बीच उचित संबंध होना चाहिए। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि चोरी ट्रेन में मौजूद किसी सह-यात्री द्वारा नहीं की गई हो। अगर ऐसा था, तो ट्रेन में कंडक्टर की मौजूदगी भी कोई मदद नहीं कर सकती थी।”
सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने पाया कि यह “पूरी तरह स्पष्ट” है कि यात्री अपने सामान की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, न कि रेलवे।
उपभोक्ता जिला फोरम ने सबसे पहले रेलवे को सेवा में कमी का दोषी पाया था और 2014 में उत्पीड़न के लिए याचिकाकर्ता को 5,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था।
राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने 2023 में इसे बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया है। प्राधिकारियों द्वारा पुनरीक्षण याचिका दायर करने के बाद राष्ट्रीय आयोग ने 2024 में राज्य आयोग के आदेश को रद्द कर दिया था। यात्री ने राष्ट्रीय आयोग के आदेश को चुनौती दी और राज्य आयोग के निर्णय को बहाल करने का निर्देश देने की मांग की।
उच्च न्यायालय ने कहा, “इस अदालत को एनसीडीआरसी द्वारा 29 अगस्त 2024 को पारित किए गए फैसले में कोई विकृति या अनौचित्य नहीं दिखता। याचिका में कोई योग्यता नहीं है। तदनुसार याचिका खारिज की जाती है।”
रेलवे ने उच्च न्यायालय में तर्क दिया कि लागू नियमों के अनुसार, उसे किसी भी बिना बुक किए गए सामान के खो जाने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और कहा कि यदि याचिकाकर्ता ने अपने सामान को बांधने या लॉक करने के लिए सीट के नीचे लगे मजबूत लोहे के छल्ले का इस्तेमाल किया होता, तो चोरी नहीं होती।