
नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को यह निर्देश देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की नियंत्रण इकाई द्वारा इलेक्ट्रॉनिक गिनती के अलावा वीवीपीएटी पर्चियों की 100 प्रतिशत मैन्युअल गिनती होनी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें पहले अपीलकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि वह एक ही मुद्दे की बार-बार जांच नहीं करेगी। अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता-पीआईएल वादी द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया।
अप्रैल 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम में डाले गए वोटों का वीवीपैट पर्चियों से अनिवार्य रूप से क्रॉस-सत्यापन करने की मांग वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना (अब मुख्य न्यायाधीश) और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि हालांकि वह मतदाताओं के इस मौलिक अधिकार को स्वीकार करती है कि उनके मत की सही ढंग से रिकार्डिंग और गणना की जाए, लेकिन इसे वीवीपैट पर्चियों की 100 प्रतिशत गणना के अधिकार या वीवीपैट पर्चियों तक भौतिक पहुंच के अधिकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, जिसे मतदाता को ड्रॉप बॉक्स में डालने की अनुमति होनी चाहिए।
अपीलकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर कर भारत निर्वाचन आयोग को भविष्य में वीवीपीएटी प्रणाली के उपयुक्त प्रारूप का उपयोग करने के निर्देश देने की मांग की थी, जिसमें प्रिंटर को खुला रखा जाता है और मुद्रित मतपत्र, जो कट कर प्रिंटर से बाहर गिर जाता है, मतदान केंद्र छोड़ने से पहले पीठासीन अधिकारी को देने से पहले मतदाता द्वारा सत्यापन के अधीन होता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 12 अगस्त को पारित अपने फैसले में इस मामले पर विचार करने से इंकार करते हुए कहा था कि जनहित याचिका में उठाया गया मुद्दा शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले के मद्देनजर अब प्रासंगिक नहीं रह गया है।






