
एम.एम. खान
लखनऊ, 17 अक्टूबर 2025:
कुम्हारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है, लेकिन ज़मीन पर हालात कुछ और ही हैं। निगोहां कस्बे में रहने वाले लगभग 40 कुम्हारों की हकीकत इन योजनाओं को आईना दिखाने के लिए काफी है। बर्तन और दीये बनाने वाले ये लोग बमुश्किल मिलने वाली मिट्टी और किराये की चाक से काम चला रहे है। वहीं बाजार में चाइनीज माल की चकाचौंध भी इनके वर्तमान और भविष्य को अंधेरे की ओर ले जा रही है।
हालांकि सरकार ने कुम्हारों को मिट्टी, इलेक्ट्रिक चाक और दूसरी सुविधाएं देने का वादा तो किया था, ताकि वे अपने काम को बढ़ा सकें, लेकिन ज्यादातर कुम्हारों को अब तक कोई मदद नहीं मिली है। निगोहां कस्बे में करीब 40 कुम्हार परिवार रहते हैं, जिनका पूरा गुज़ारा मिट्टी के बर्तनों पर ही निर्भर है। कुम्हार नियाज, अतीक, कलीम, अफसाना और सरीफुन निशा बताते हैं कि उनके पास मिट्टी लाने की व्यवस्था नहीं है, और इलेक्ट्रिक चाक भी किराए पर लेकर किसी तरह थोड़ा-बहुत काम कर रहे हैं।
कुम्हार नियाज ने बताया “चीन के सामान ने हमारा काम चौपट कर दिया है। पहले हमारे बनाए कुल्हड़, दीये और बर्तन अच्छी बिक्री करते थे, अब लोग सस्ते प्लास्टिक या चीनी चीजें खरीद लेते हैं। पहले दीपावली के समय उन्हें 50-60 हजार रुपये तक के ऑर्डर मिलते थे, लेकिन अब वो 10-15 हजार रुपये तक सिमट गए हैं। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि लोग दीये और बर्तन खरीदने से भी बच रहे हैं। पहले घरों की मुंडेर पर हमारी दियालियां जला करती थीं, अब लोग किराए की झालर लगाकर काम चला रहे हैं। मिट्टी के दीयों की चमक अब पहले जैसी नहीं रही।”
महिला कुम्हार सरीफुन निशा कहती हैं कि पिछले साल 50 रुपये सैकड़ा दीये बेचे थे। इस साल भी वही रेट है। दाम नहीं बढ़े। तीन साल हो गए बिजली से चलने वाला चाक तक नहीं मिला। साल भर कर्जा लेकर घर चलाते हैं दिवाली पर उम्मीद रहती है कि कमाई होगी तो कर्जा चुका देंगे और घर गृहस्थी चलती रहेगी लेकिन चाइनीज झालर के फैशन ने सब चौपट कर दिया।
फिलहाल सरकार ने माटी कला बोर्ड बनाकर कुम्हारों को मदद देने की बात कही थी, लेकिन अब तक न तो इलेक्ट्रिक चाक मिला है, न मिट्टी का आवंटन। महंगाई और चीनी सामान की बढ़ती लोकप्रियता ने कुम्हारों की जिंदगी मुश्किल कर दी है। अब दीपावली के त्योहार में भी उनके चाक की रफ्तार थम सी गई है।