
शिमला, 15 अगस्त 2025
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी महिला की तस्वीरें या वीडियो लेना, अपने आप में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 78 के तहत “पीछा करना” (स्टॉकिंग) का अपराध नहीं है। जस्टिस राकेश कैंथला ने इस मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए स्पष्ट किया कि यहां लगाए गए आरोप धारा 78 की कानूनी परिभाषा को पूरा नहीं करते। कोर्ट ने कहा कि पीछा करने का अपराध तब बनता है जब कोई व्यक्ति, महिला की स्पष्ट आपत्ति के बावजूद, बार-बार व्यक्तिगत मेलजोल बढ़ाने की कोशिश करे या उसके डिजिटल माध्यमों की निगरानी करे।
यह मामला उस समय सामने आया जब एक क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी की पत्नी की तस्वीरें और वीडियो लेने के आरोप में एक बिजनेसमैन के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई। शिकायतकर्ता के अनुसार, पर्यावरण कानून के उल्लंघन के मामले में उनके व्यवसाय के खिलाफ कार्रवाई के बाद, आरोपी ने धमकाने के इरादे से न केवल उनकी गाड़ी को टक्कर मारने की कोशिश की बल्कि उनकी पत्नी की तस्वीरें और वीडियो भी बनाए। राज्य सरकार और शिकायतकर्ता पक्ष ने अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड आरोपी के पीछा करने की पुष्टि करते हैं और जमानत मिलने से जांच बाधित हो सकती है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि आरोपों में यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने महिला से व्यक्तिगत संपर्क बढ़ाने का प्रयास किया या उसकी ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखी। कोर्ट ने माना कि तस्वीरें लेने की घटना अपने आप में स्टॉकिंग की कानूनी परिभाषा में नहीं आती और इस मामले में आरोपी की हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है। इस फैसले को निजता और आपराधिक कानून की सीमाओं पर एक अहम मार्गदर्शक माना जा रहा है।