लखनऊ, 5 दिसंबर 2025:
उत्तर प्रदेश में वन्य जीव संरक्षण और इको-टूरिज्म के क्षेत्र में तेजी से हो रहे बदलाव अब जमीन पर नजर आने लगे हैं। दुधवा, पीलीभीत, कतर्नियाघाट, अमानगढ़ और सोहगीबरवा जैसे वन्य क्षेत्र न केवल जैव-विविधता का सुरक्षित केंद्र बन रहे हैं, बल्कि पर्यटकों के आकर्षण का नया हब भी साबित हो रहे हैं।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि सरकार वन, सिंचाई और अन्य विभागों के साथ समन्वय स्थापित कर पर्यटकों के लिए आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल सुविधाएं विकसित कर रही है। उनका कहना है कि लक्ष्य संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाना है, साथ ही स्थानीय समुदाय को आजीविका के अवसर उपलब्ध कराना भी महत्वपूर्ण है।
राज्य सरकार के प्रयासों से गैंडा, बाघ, बारहसिंघा, घड़ियाल जैसी दुर्लभ प्रजातियों के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार किया गया है। तराई, ब्रजभूमि, गंगा बेसिन, बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में वन्य जीव संरक्षण और सतत पर्यटन को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया गया है। इन क्षेत्रों में बढ़ी जैव-विविधता ने प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित किया है।
इको-टूरिज्म विकास बोर्ड ने पिछले तीन वर्षों में 161 करोड़ रुपये की लागत से बड़े पैमाने पर पर्यटन सुविधाओं का विकास किया है। इसमें सड़क सुधार, कैफेटेरिया, इको-फ्रेंडली विश्राम स्थल, गज़ीबो, नेचर ट्रेल, बर्ड वॉचिंग जोन और बच्चों के लिए गतिविधि केंद्र जैसी सुविधाएं शामिल हैं। वर्ष 2022-23 में 21.04 करोड़, 2023-24 में 68.56 करोड़ और 2024-25 में 72.30 करोड़ रुपये की परियोजनाएं स्वीकृत की गईं, जो लगातार बढ़ते निवेश का संकेत देती हैं।
वन विभाग की हालिया रिपोर्टों में वन्य जीवों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज हुई है। 2022 की गणना रिपोर्ट में दुधवा नेशनल पार्क में 65 हजार से अधिक, कतर्नियाघाट में लगभग 12 हजार और बफर जोन में 14 हजार से अधिक वन्य जीव दर्ज किए गए थे। वहीं 2025 की नवीनतम गणना में दुधवा टाइगर रिजर्व में संख्या 1.13 लाख के पार पहुंच गई। कतर्नियाघाट में 17 हजार से अधिक और बफर जोन में लगभग 15 हजार वन्य जीव दर्ज हुए। तेंदुआ/गुलदार की संख्या 2022 के 92 से बढ़कर 2025 में 275 हो गई, जबकि गैंडे 49 से बढ़कर 66 हो गए हैं।
‘विकसित उत्तर प्रदेश @2047’ कार्यशाला में इको-टूरिज्म को भविष्य की रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया गया। वेटलैंड्स और वाइल्डलाइफ जोन में ग्रीन नेटवर्क विकसित करने, वन क्षेत्रों को पूर्णतः प्लास्टिक-मुक्त बनाने और सतत पर्यटन मॉडल को बढ़ावा देने जैसी योजनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इसमें स्थानीय समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका तय की गई है, जिससे इको-टूरिज्म के साथ गांवों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर हो सके।
मंत्री जयवीर सिंह के अनुसार दुधवा, पीलीभीत और कतर्नियाघाट में प्रशिक्षित नेचर गाइड्स की तैनाती की गई है। थारू जनजाति को पर्यटन गतिविधियों से जोड़ने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। स्थानीय भोजन, संस्कृति और परंपराओं को सैलानियों तक पहुंचाने की योजनाएं सफल साबित हो रही हैं। होमस्टे मॉडल के माध्यम से ग्रामीणों की आय में बढ़ोतरी हुई है और पर्यटकों को भी स्थानीय जीवन का वास्तविक अनुभव मिलता है।
सरकार का उद्देश्य वन्य जीव संरक्षण और इको-टूरिज्म को एक-दूसरे के पूरक बनाकर प्रदेश को प्रकृति आधारित पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाना है। प्राकृतिक धरोहरों की सुरक्षा, स्थानीय समुदाय की मजबूती और पर्यटकों को आधुनिक सुविधाओं के संयुक्त प्रयासों से उत्तर प्रदेश आने वाले वर्षों में देश के सबसे बड़े इको-टूरिज्म हब के रूप में उभरने की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है।






