नई दिल्ली, 10 मई 2025
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई राज्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) से संबंधित किसी कार्रवाई या निष्क्रियता पर किसी तरह से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है तो सुप्रीम कोर्ट उस मामले में हस्तक्षेप कर सकता है, लेकिन वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत किसी राज्य को नीति अपनाने के लिए दबाव और बाध्य करने वाला निर्देश जारी नहीं कर सकता है।
इसी मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही, जिसमें तमिलनाडु और कुछ अन्य राज्यों को एनईपी लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर वर्तमान रिट याचिका में विचार नहीं करना चाहती, लेकिन उचित कार्यवाही में इस पर विचार किया जा सकता है। पीठ ने कहा, “राज्यों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को अपनाना चाहिए या नहीं, यह एक जटिल मुद्दा है। सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 32 के माध्यम से नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी कर सकता है। यह सीधे तौर पर किसी राज्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जैसी नीति अपनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। हालाँकि, अगर राष्ट्रीय शिक्षा नीति से संबंधित राज्य की कार्रवाई या निष्क्रियता किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है, तो न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है। हम इस रिट याचिका में इस मुद्दे की जाँच करने का प्रस्ताव नहीं रखते हैं।”याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता एडवोकेट जीएस मणि से पूछा कि वह कौन हैं और एनईपी से उनका क्या संबंध है। मणि ने बताया कि वह मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले हैं और दिल्ली में बस गए हैं ।उन्होंने कहा कि वे तमिलनाडु में हिंदी नहीं सीख सकते क्योंकि वहां के स्कूलों में हिंदी नहीं पढ़ाई जाती और उन्हें इसे आसानी से सीखने में दिक्कत हो रही है।
जस्टिस पारदीवाला ने तुरंत टिप्पणी की, “तो अब दिल्ली में हिंदी सीखो, न?”
अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि उसका मानना है कि याचिकाकर्ता का उस मामले से कोई लेना-देना नहीं है जिसका वह समर्थन करना चाहता है। अदालत ने कहा, “हालांकि वह तमिलनाडु राज्य से हो सकता है, फिर भी अपने स्वयं के बयान के अनुसार, वह नई दिल्ली में रह रहा है। ऐसी परिस्थितियों में, यह याचिका खारिज की जाती है।” मणि की याचिका में कहा गया है कि सभी राज्यों का दायित्व है कि वे एनईपी को अक्षरशः लागू करें तथा इसके कार्यान्वयन के लिए केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करें। इसमें आगे कहा गया है कि नीति में हिंदी को लागू करने या राज्यों को बच्चों को यह विषय पढ़ाने के लिए बाध्य नहीं किया गया है, बल्कि केवल यह कहा गया है कि पाठ्यक्रम में हिंदी, अंग्रेजी, राज्य भाषा या अन्य प्रासंगिक विषयों को शामिल करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।