नई दिल्ली, 8 अगस्त 2025:
8 अगस्त 1942 को बंबई में कांग्रेस के अधिवेशन में महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो” आंदोलन की घोषणा की थी। इस आंदोलन का उद्देश्य था अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ निर्णायक संघर्ष। लेकिन, इस राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम लीग शामिल नहीं हुई। महात्मा गांधी ने कई प्रयास किए कि मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो, पर मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे नकार दिया।
गांधी ने स्पष्ट कहा कि यदि मुस्लिम लीग बिना शर्त आजादी की मांग में सहयोग करे, तो कांग्रेस को यह आपत्ति नहीं होगी कि आजादी के बाद लीग को भारत के नाम पर सत्ता का पूरा अधिकार मिले। गांधी की यह कोशिश कांग्रेस और मुस्लिमों के बीच सामंजस्य बनाने की एक गंभीर पहल थी, पर जिन्ना ने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा, “मिस्टर गांधी के लिए आजादी का मतलब है कांग्रेस का राज।”
जिन्ना को यह डर था कि भारत आजाद होते ही हिंदू बहुल सरकार बनेगी, जिससे मुसलमानों को उनका हक नहीं मिलेगा। वहीं लीग के कुछ नेता – जैसे राजा महमूदाबाद और जमाल मियां – कांग्रेस से हाथ मिलाने के पक्ष में थे, पर जिन्ना की जिद के आगे वे टिक न सके।
भारत छोड़ो आंदोलन के चलते जब कांग्रेस की शीर्ष नेतृत्व जेल में थी, तब मुस्लिम लीग को अंग्रेजों का साथ देने का खुला मौका मिला। इसी अवधि में जिन्ना की लोकप्रियता मुस्लिम समाज में काफी बढ़ गई। यही कारण रहा कि 1946 के चुनावों में मुस्लिम लीग को मुस्लिम सीटों पर भारी जीत मिली और पाकिस्तान की मांग को मजबूती मिली।
महात्मा गांधी ने मुस्लिम लीग के साथ एकता के लिए जहां भरपूर नरमी दिखाई, वहीं जिन्ना ने हर मोर्चे पर तीखा विरोध किया। गांधी का मानना था कि आजादी के बाद एकता संभव है, जबकि जिन्ना इसके उलट सोचते थे। इसी मतभेद ने भारत को दो हिस्सों में बांटने की नींव रख दी।