National

तिब्बत पर चीनी कब्जे की 75 साल की त्रासदी: कैलास यात्रा में छलका पीड़ा और सांस्कृतिक विनाश का सच

तवांग | 16 जुलाई 2025
कैलास मानसरोवर यात्रा के आठवें भाग में वरिष्ठ लेखक हेमंत शर्मा ने तिब्बत पर चीन के 75 साल पुराने कब्जे और वहां की मूल संस्कृति के दमन पर गहरी चिंता जताई है। यात्रा के अनुभवों के साथ उन्होंने तिब्बतियों की आंखों में छिपी पीड़ा, भारत की ऐतिहासिक भूलें और चीन की दमनकारी नीतियों को विस्तार से रेखांकित किया।

शर्मा ने लिखा कि तिब्बत कभी चीन का हिस्सा नहीं रहा। 1949 तक वह एक स्वतंत्र राष्ट्र था, जहां भारतीय मुद्रा और डाक व्यवस्था तक संचालित होती थी। पर 1950 में चीनी कब्जे ने सबकुछ बदल दिया। दलाई लामा को 1959 में भेष बदलकर भारत भागना पड़ा। उनके पीछे हजारों तिब्बती भारत आए और धर्मशाला में बसाए गए।

लेख में डॉ. राम मनोहर लोहिया के तीखे सवालों और संसद में तिब्बत के समर्थन में समाजवादियों की आवाज को प्रमुखता दी गई है। लोहिया ने कहा था, “कोई कौम अपने सबसे बड़े देवी-देवताओं को विदेश में नहीं बसाती। शिव-पार्वती का घर विदेश में कैसे गया?”

तिब्बत में धार्मिक संस्थाओं का विनाश, बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम, और मठों को डायनामाइट से उड़ाने जैसी घटनाएं तिब्बती संस्कृति के सफाए की चीन की नीति का प्रमाण हैं। हान जाति के नास्तिक चीनी नागरिकों को जबरन तिब्बत में बसाया गया, जिससे नस्लीय और सांस्कृतिक पहचान मिटाई जा सके।

शर्मा ने यह भी लिखा कि आज तिब्बत सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अस्तित्व के संकट में है। दुनिया केवल बयान देती है, ठोस कदम कोई नहीं उठाता। तिब्बतियों की नजरें आज भी भारत की ओर उम्मीद से टिकी हैं।

उन्होंने सवाल उठाया—क्या तिब्बत का उद्धार अब केवल भगवान शिव के भरोसे है? क्या हम केवल मूकदर्शक बने रहेंगे? लेख यात्रा के आध्यात्मिक अनुभव के साथ तिब्बती अस्मिता की चुभती हुई चीख भी है, जो हर भारतीय को झकझोरती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button