
नई दिल्ली,13 नवंबर 2024
पिछले साल सिक्किम में ग्लेशियल झील की बाढ़ से भारी तबाही हुई, जिसमें सौ से अधिक लोग मारे गए और तीस्ता IV पनबिजली संयंत्र पूरी तरह नष्ट हो गया। इसके बाद केंद्र सरकार ने गंभीर ग्लेशियल झीलों और ग्लोफ के खतरे वाले पनबिजली परियोजनाओं की पहचान करने और वैज्ञानिक उपायों से इनके निपटने पर जोर दिया है।
नए अध्ययन से पता चला है कि ग्लोफ्स के खतरे वाली 47 परियोजनाओं में से 20 हिमाचल प्रदेश में हैं, जिनमें बैरा सियूल, नाथपा झाकड़ी, बुधिल, मलाणा II, करचम वांगतू और चंजू I जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं शामिल हैं। उत्तराखंड में भी नौ परियोजनाएं, जम्मू-कश्मीर में पांच और अरुणाचल प्रदेश में तीन परियोजनाएं ग्लोफ के खतरे में हैं, जिनमें धौलीगंगा, विष्णुप्रयाग और तपोवन विष्णुगाड जैसी परियोजनाएं प्रमुख हैं।
सिक्किम में पांच और परियोजनाएं हैं जिन्हें संवेदनशील माना जाता है, जहां 2023 में दक्षिण ल्होनाक ग्लोफ से भारी तबाही हुई थी। ‘ग्लोफ शमन के लिए रणनीतियां’ पर राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण समिति की कार्यशाला में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, सिक्किम में हुई इस घटना के बाद सभी छह प्रभावित राज्यों में मैपिंग का काम चल रहा है। एनडीएमए ने आपदा के बाद इस समिति का गठन किया था, और कई दौर की बैठकों और अभियानों के बाद महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई गई है।
एनडीएमए द्वारा तैयार की गई एक सूची के अनुसार, हिमालय में 7,500 ग्लेशियल झीलों में से लगभग 200 ग्लोफ्स के लिहाज से संवेदनशील हैं, जिनमें से 100 झीलों को केंद्रीय जल आयोग ने बेहद खतरनाक श्रेणी में रखा है। इनमें से 42 सिक्किम, 15-15 लद्दाख और जम्मू-कश्मीर, 10 हिमाचल प्रदेश और 9-9 उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में हैं। सिक्किम में 11 ‘श्रेणी-4’ और 16 अन्य झीलें भी हैं। आईआईटी भुवनेश्वर के असीम सत्तार ने चेतावनी दी कि ग्लेशियरों के पिघलने की दर से संकेत मिलता है कि ग्लोफ गतिविधि पूर्वी हिमालय से हटकर हिंदुकुश या मध्य हिमालय की ओर जा सकती है, जिसका असर जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड पर पड़ेगा।






