ReligiousUttar Pradesh

माखन चोर के मुस्लिम ‘भक्त’! यही है बनारस की असली तस्वीर…

वाराणसी, 26 अगस्त

वाराणसी। शहर बनारस गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल है। यहां बनारसी साड़ी के ताने-बाने की तरह हिंदू और मुसलमान आपस में बुने हुए हैं। तभी तो शायद अज़ीम शायर नजीर बनारसी ने लिखा था कि ‘हिंदुओं को तो यकीं है मुसलमां है नजीर, मुसलमानों को शक है कहीं हिंदू तो नहीं!’ उनका ये शेर ये बताने के लिए काफी है कि हिंदू और मुसलमान काशी से जुड़े हुए हैं। तभी तो फातिमा फुले नहीं समा रही है राधा बनकर और सादिक को माखन चोर बनने में भी कोई गुरेज नहीं। ये काशी की किस्सागोई नहीं है। यहां की मिट्टी की तासीर में सद्भावना, सौहार्द और जिंदादिली कूट-कूटकर भरी हुई है।

आज के दौर में जब हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के सम्बंध कई बार तार-तार होते नजर आते हैं, ऐसे में सभी धर्म की संस्कृति को काशी शहर ने बखूबी संजोया है। यहां हर पर्व लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था उर्मिला देवी मेमोरियल सोसाइटी द्वारा सुंदरपुर में संचालित निःशुल्क पाठशाला में पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चे जन्माष्टमी महोत्सव में कृष्ण से जुड़े प्रसंगों पर प्रस्तुति देंगे। खास बात यह है कि संस्था में शिक्षा ग्रहण करने वाले इन मुस्लिम बच्चों को गीता के संस्कृत में श्लोक तो कंठस्थ हैं ही इनका अर्थ भी समझते हैं। सादिक भगवान कृष्ण के किरदार में स्वयं को ढाल रहा है तो राधा की भूमिका का अभ्यास फातिमा दिलोजान से कर रही है। संस्था की निदेशिका प्रतिभा सिंह ने बताया कि मुस्लिम समुदाय के बच्चे भगवान कृष्ण से जुड़े प्रसंग करने के लिए बेताब हैं।

झुग्गी के नंदलालों को संवार रही कलयुग की यशोदा

पाठशाला में पढ़ रहे इन मासूमों के हाथों में कभी कटोरा था। भीख मांगना इनकी नियति बनी थी, लेकिन अब जिंदगी बदल गई है। नए सांचे में ढल रहे बचपन को एक मकसद मिल चुका है, वे प्रतिभा की तालीम से भविष्य को संवारने में जुटे हुए हैं। ऐसे करीब 80 बच्चे हैं, जिनकी जिंदगी शिक्षा की लौ से रोशन हो रही है। करीब सौ से ज्यादा बच्चों की जिंदगी पढ़ा लिखाकर प्रतिभा सिंह बदलने में जुटी हुई हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button