
हरेन्द्र दुबे
गोरखपुर,4 अप्रैल 2025:
चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन गोरखपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित मां कड़जहि के सिद्धपीठ मंदिर में श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। मां के इस पवित्र धाम पर नौ दिनों तक गांव-गांव की महिलाएं नीम के पत्ते, अड़हुल के फूल और जल से धार चढ़ाती हैं। मान्यता है कि मां कड़जहि की कृपा से चेचक, हैजा और तावनी जैसी महामारी से मुक्ति मिलती है।
आज मां के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की विशेष पूजा-अर्चना बड़े हर्ष और उल्लास के साथ की गई। मां कालरात्रि का रूप भयंकर जरूर है, लेकिन वे अपने भक्तों को भय और दुखों से मुक्ति दिलाकर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। उनका शरीर अंधकार के समान काला, लंबे बिखरे बाल, बिजली सी चमकती माला और चार हाथों में खड्ग, लौह शस्त्र, वरमुद्रा और अभय मुद्रा है।
यहां की मान्यता है कि प्राचीन काल में जब गांव में चेचक जैसी महामारी फैलती थी, तब महिलाएं मां कड़जहि के मंदिर पर जलधार चढ़ाकर मन को शीतल करती थीं। यही परंपरा आज भी जीवंत है। हर नवरात्रि में दूर-दराज से हजारों महिलाएं यहां पहुंचती हैं और हाथ में लोटे में जल, दो नीम के पत्ते व अड़हुल के फूल के साथ मां को धार अर्पित करती हैं। यह प्रक्रिया न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक सामाजिक एकजुटता का भाव भी जगाती है।
कोरोना काल में भी जब गांव-गांव में भय का माहौल था, तब भी सैकड़ों महिलाओं ने मां कड़जहि को धार चढ़ाकर गांव की सलामती की कामना की थी।
आज के दिन मां कालरात्रि को गुड़ और हलवे का भोग लगाया गया। पूजा में सिद्धकुंजिका स्तोत्र और अर्गला स्तोत्रम का पाठ किया गया। मंदिर के पुजारी ने बताया कि “मां की कृपा से जो भी श्रद्धा और विश्वास से आता है, उसे न केवल शांति मिलती है, बल्कि मानसिक और शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है।”
यहां आए श्रद्धालुओं ने भी मां की महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि “हर साल हम पूरे परिवार के साथ यहां आते हैं, मां की धार चढ़ाने से मन शांत होता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।”