मुंबई, 4 अप्रैल 2025:
श्वेत श्याम या रंगीन फिल्मों का दौर हो, मनोज कुमार के चेहरे पर भारतीयता खूब दमकती थी। गीत संगीत कोरियोग्राफी ही नहीं वो कैमरों के एंगल में भी भारत का ध्यान रखते थे। उनके हाव-हाव देखकर ही कई पीढ़ी ने देशभक्ति के जज्बे को शिद्दत से महसूस किया।
फ़िल्म अभिनेता मनोज कुमार की जीवन यात्रा औऱ उनकी फिल्मों की जानकारी कहीं भी मिल जाएगी लेकिन उन्हें एहसास करने वाले लोग कल भी थे और आज भी हैं और आगे जो रहेंगे वो गूगल पर जिज्ञासा से सर्च जरूर करेंगे औऱ उन्हें कृतज्ञता के भाव से ही देखेंगे। इसकी वजह भी है कि बतौर अभिनेता, आते जाते फटाफट वाले भावों से दूर रहे मनोज कुमार ने ठहराव और गंभीर किरदार को तवज्जो दी। वो प्रेम गीत भी गाते थे तो बेहद संजीदगी से आप पत्थर के सनम का तौबा ये मतवाली चाल सुन या देख लीजिए।
उपकार व क्रांति के भारत, शहीद फ़िल्म के भगत सिंह बने मनोज कुमार ने जब रोटी कपड़ा और मकान मूवी के बारे में सोचा तो भारत का नाम नहीं छोड़ा उनका यही जज्बा फर्स्ट क्लास से लेकर बॉलकोनी में बैठे दर्शकों को महसूस हुआ। आलम ये था कि जब मनोज कुमार देश के स्वाभिमान की बात करते तो सिनेमा हॉल में बैठे दर्शकों की मुठ्ठियाँ भिंच जातीं वो जब भारत की संस्कृति का गौरव गान करते तो दर्शक सीना तान लेते और जब उन्हें तकलीफ पहुंचती तो ऐसे सहम जाते जैसे कोई अपना संकट में फंसा हो। जिंदगी की न टूटे लड़ी और चांदी की दीवार न तोड़ी गाने वाला हम सबसे दूर तो हुआ है लेकिन भारत के रूप में हमारे साथ जिंदा रहेगा।
