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वक्फ बिल को लेकर तेज हुआ विरोध, अब मुस्लिम लॉ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

नई दिल्ली, 8 अप्रैल 2025

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

इससे पहले दिन में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने इस मुद्दे पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद तथा आप विधायक अमानतुल्ला खान सहित अन्य की याचिका पर विचार करने और उसे तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की थी।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसे संसद के दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद पारित कर दिया गया।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने 6 अप्रैल को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।

एक प्रेस वक्तव्य में एआईएमपीएलबी के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि याचिका में संसद द्वारा पारित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा गया है कि ये “मनमाने, भेदभावपूर्ण और बहिष्कार पर आधारित” हैं।

इसमें कहा गया है कि संशोधनों से न केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, बल्कि इससे सरकार की वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखने की मंशा भी स्पष्ट रूप से सामने आई है, जिससे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक बंदोबस्त के प्रबंधन से वंचित किया जा रहा है।

इसमें कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म का पालन करने, उसका प्रचार करने तथा धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार सुनिश्चित करते हैं।

इसमें कहा गया है कि नया कानून मुसलमानों को इन मौलिक अधिकारों से वंचित करता है।

बयान में कहा गया है, “केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड के सदस्यों के चयन के संबंध में संशोधन इस वंचना का स्पष्ट प्रमाण है। इसके अतिरिक्त, वक्फ (दाता) के लिए पांच साल की अवधि के लिए एक सक्रिय मुसलमान होना आवश्यक है, जो भारतीय कानूनी ढांचे और संविधान के अनुच्छेद 14 और 25, साथ ही इस्लामी शरिया सिद्धांतों के भी विपरीत है।”

प्रेस विज्ञप्ति में इस कानून को भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 के साथ असंगत बताते हुए कहा गया कि अन्य धार्मिक समुदायों – हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध – को दिए गए अधिकार और सुरक्षा से मुस्लिम वक्फ, औकाफ को वंचित किया गया है।

बोर्ड ने कहा कि शीर्ष अदालत को “संवैधानिक अधिकारों का संरक्षक” होने के नाते इन “विवादास्पद संशोधनों को रद्द करना चाहिए, संविधान की पवित्रता को बनाए रखना चाहिए” और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को “कुचलने” से बचाना चाहिए।

याचिका का निपटारा अधिवक्ता एम.आर. शमशाद द्वारा किया गया, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का प्रतिनिधित्व एडवोकेट तल्हा अब्दुल रहमान ने किया, जो इसके महासचिव मौलाना फजलुर रहीम मुजद्दिदी के माध्यम से बोर्ड का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

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