अंशुल मौर्य
वाराणसी, 31 मई 2025,
यूपी के वाराणसी स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में महारानी अहिल्याबाई होल्कर की त्रिशताब्दी जयंती पर शनिवार को हुए समारोह में डॉ. कुमार विश्वास ने अपने व्याख्यान से नारी शक्ति के गौरव गान और ‘मैं काशी हूं’ गीत से श्रोताओं का दिल जीत लिया।
अस्सी घाट पर गुनगुनाई ‘कंकर कंकर मेरा शंकर’ कविता
कवि, विचारक डॉ. कुमार विश्वास शुक्रवार की शाम पत्नी के साथ काशी पहुंचे व अस्सी घाट पर विधिवत पूजन किया। इस दौरान सुबह-ए-बनारस मंच के कृष्ण मोहन पांडेय ने पूजन की व्यवस्था की। घाट पर मौजूद स्थानीय लोग और प्रशंसक उनके स्वागत में उमड़ पड़े। “हर हर महादेव” के जयघोष के बीच उन्होंने अपनी कविता “कंकर-कंकर मेरा शंकर, मैं लहर-लहर अविनाशी हूँ…” गुनगुनाई।
भविष्य में मील का पत्थर बनेगा रानी आहिल्याबाई होल्कर से जुड़ा अभियान
रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में अहिल्याबाई की त्रिशताब्दी जयंती पर हुए समारोह में मिशन सिंदूर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “जिन नारियों को कभी नीचा दिखाने की कोशिश की गई, उन्हीं ने अपनी ताकत और साहस से दुनिया को दिखा दिया कि भारत की बेटियाँ किसी से कम नहीं।” अहिल्याबाई होल्कर की गौरव गाथा को याद करते हुए कुमार विश्वास ने कहा, “आज के स्कूलों में बच्चों को इस महान शासिका के बारे में कम बताया जाता है, लेकिन उनके नाम पर शुरू किया गया अभियान भविष्य में मील का पत्थर साबित होगा।” उन्होंने एक रोचक प्रसंग सुनाया, जब अहिल्याबाई ने एक योद्धा को चुनौती दी थी: “हाथी पर मैं और घोड़ी पर मेरी सहेलियाँ आ रही हैं। अगर हमने तुम्हें हरा दिया, तो तुम्हारा अपमान होगा।” इस साहसिक दृष्टिकोण ने अहिल्याबाई को नारी शक्ति का प्रतीक बनाया।
काशी से मिलता जुलता है मालवा का आध्यात्मिक स्वरूप
भारत वेदों की भूमि है, जहाँ माता का पूजन सबसे पहले होता है। हजारों साल पुरानी मूर्तियों में भी देवी अपने अर्धनारीश्वर रूप में दिखती हैं, जो भारत में नारी के सम्मान को दर्शाता है। फिर भी, हमें स्त्री विरोधी होने का आरोप झेलना पड़ता है, जो सरासर गलत है।” मालवा और काशी की सांस्कृतिक समानताओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने बताया कि मालवा का आध्यात्मिक स्वरूप काशी से मिलता-जुलता है, यही कारण था कि मालवीय परिवार ने काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया।
“मैं काशी हूँ…” गीत से बांधा समां, काशी के सांसद की ताकत का किया जिक्र
डॉ. कुमार विश्वास ने अपनी मशहूर रचना “मैं काशी हूँ…” गुनगुनाई, तो हजारों हाथ तालियों की लय में थिरक उठे। उनके गीत में काशी की गलियों का फक्कड़पन, अस्सी घाट की चाय की चुस्कियों से लेकर लंका की ललकार तक का जीवंत चित्रण था। भारतेंदु, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और बेढब बनारसी की स्मृति को उन्होंने काशी की सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ा, तो महामना मालवीय, लाल बहादुर शास्त्री और राजर्षि उदय प्रताप के योगदान को भी श्रद्धांजलि दी। बिना नाम लिए, उन्होंने काशी के वर्तमान सांसद की चार दिन में दिखाई गई ताकत का भी जिक्र किया।
आगरा में हुआ नाट्य मंचन,जीवंत हुई अहिल्याबाई होलकर की जीवन यात्रा
आगरा: डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा एवं भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ एवं रंगलोक सांस्कृतिक संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में सूरसदन प्रेक्षागृह में “जनकल्याणी राजमाता अहिल्याबाई होलकर” नाटक का मंचन हुआ। नाटक में अहिल्याबाई होलकर की जनसेवा, धर्म, न्याय और समाज निर्माण की प्रेरणादायक यात्रा को जीवंत किया गया। कुलपति प्रो आशु रानी, डॉ. रति शंकर त्रिपाठी, अध्यक्ष व बिपिन कुमार, निदेशक भारतेंदु नाट्य अकादमी मौजूद रहे। नाटक का लेखन युवा पिंकी सिंह व निर्देशन रोहित चौहान व सह निर्देशन दिव्यता उपाध्याय ने किया।