
ढाका, 6 जून 2025:
बांग्लादेश की राजनीति इन दिनों जबरदस्त उथल-पुथल से गुजर रही है। लंबे समय से चुनाव टाल रहे प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने शुक्रवार को घोषणा की कि 2026 के अप्रैल में आम चुनाव कराए जाएंगे। यह फैसला तीन बड़े दबावों के चलते लिया गया—विपक्ष का आंदोलन, भारत की सख्त चेतावनी और सेना प्रमुख की नाराजगी।
पहली वजह, विपक्षी दलों का आंदोलन। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी (BNP) ने 28 मई को ढाका समेत देशभर में जोरदार प्रदर्शन किया। पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान ने सरकार पर चुनाव में जानबूझकर देरी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि चुनावों की निर्धारित समय-सीमा तीन महीने होती है, लेकिन अब 10 महीने बीत चुके हैं और तारीख तय नहीं हुई। बीएनपी के साथ 27 अन्य विपक्षी दलों के एकजुट होने से यूनुस सरकार पर दबाव कई गुना बढ़ गया।
दूसरी अहम वजह है भारत का कड़ा रुख। नई दिल्ली को आशंका है कि चुनावों में देरी से बांग्लादेश में कट्टरपंथी गुट जैसे ISI और जमात-ए-इस्लामी मजबूत हो सकते हैं। भारत की खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक, देरी से लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर होगी और इससे चीन का प्रभाव भी बढ़ सकता है, जिसे भारत सीमित करना चाहता है। हाल ही में भारत-बांग्लादेश के उच्च स्तरीय वार्ता में भारत ने साफ कहा कि चुनाव जल्द कराना जरूरी है।
तीसरी वजह, सेना प्रमुख जनरल वकर-उज़-ज़मान की नाराजगी। उन्होंने कई बार चुनाव टालने पर सरकार की आलोचना की है। सूत्रों के अनुसार, वे लोकतंत्र को कमजोर होते नहीं देखना चाहते। सेना की नाराजगी ने यूनुस सरकार की स्थिति और कमजोर कर दी।
इसके अलावा, यूनुस की छवि पर भी संकट गहराया है। युवाओं में बढ़ती नाराजगी, बेरोजगारी और शिक्षा व्यवस्था की अनदेखी के कारण उनकी लोकप्रियता तेजी से गिर रही है। छात्र संगठनों और युवाओं ने उन्हें ‘संविधान रक्षक’ से ‘टालमटोल प्रशासक’ तक करार दे दिया। ऐसे माहौल में यूनुस के पास चुनाव की घोषणा के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था।