
बीजिंग, 15 जून 2025:
रेयर अर्थ मेटल्स की वैश्विक दौड़ में चीन की मजबूत पकड़ अब पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने पिछले 10 वर्षों में रेयर अर्थ मेटल्स का उत्पादन तीन गुना तक बढ़ा दिया है। 2014 में जहां यह उत्पादन 1.3 लाख टन था, वहीं 2024 में यह बढ़कर 4.94 लाख टन तक पहुंच गया। यही नहीं, चीन अब दुनिया के कुल रेयर अर्थ उत्पादन का लगभग 69% हिस्सा अकेले पैदा कर रहा है।
अमेरिका की यूएस जियोलॉजिकल सर्वे रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका केवल 45,000 टन और म्यांमार 31,000 टन का ही उत्पादन कर पाते हैं। जबकि वैश्विक सप्लाई में अमेरिका की हिस्सेदारी मात्र 11% और म्यांमार की 8% है। इसका मतलब है कि तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और खासकर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स जैसे क्षेत्रों में चीन का वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है।
भारत जैसे देश इससे सीधा प्रभावित हो रहे हैं। अप्रैल 2025 से चीन ने भारत को रेयर अर्थ मैग्नेट्स की सप्लाई बंद कर दी है, जिससे इलेक्ट्रिक व्हीकल निर्माण तक रुकने की नौबत आ गई है। भारत के पास रेयर अर्थ मेटल्स के भंडार तो हैं, लेकिन माइनिंग से लेकर प्रोसेसिंग तक की पूरी वैल्यू चेन विकसित नहीं हो पाई है।
वर्तमान में चीन केवल उत्पादन ही नहीं, प्रोसेसिंग और फिनिशिंग में भी सबसे आगे है। अमेरिका, जापान और यूरोपीय देश इन खनिजों के लिए चीन पर निर्भर हैं, इसलिए चीन का एक्सपोर्ट रोकना उनके लिए भी एक रणनीतिक खतरा बन गया है।
भारत सरकार ने अब निजी कंपनियों को रेयर अर्थ खनन के लिए लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक भारत इस क्षेत्र में तकनीकी आत्मनिर्भरता नहीं हासिल करता, तब तक चीन की पकड़ कायम रहेगी। वैश्विक स्तर पर भी अब वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की खोज शुरू हो चुकी है और यह भारत के लिए एक बड़ा अवसर भी हो सकता है, बशर्ते रणनीतिक निवेश और रिसर्च को प्राथमिकता दी जाए।