
पूर्णिया, 8 जुलाई 2025
बिहार के पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में पांच लोगों को पेड़ से बांधकर जिंदा जलाने की दिल दहला देने वाली घटना ने पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अंधविश्वास के चलते हुई इस निर्मम हत्या की भनक तक पुलिस को रातभर नहीं लगी और सुबह होने पर भी शवों की तलाश में उसे 12 घंटे से ज्यादा का वक्त लग गया।
रविवार रात गांव में एक पंचायत बुलाई गई थी, जिसमें 300 से अधिक लोग शामिल हुए। इसमें एक व्यक्ति रामदेव उरांव ने अपने बेटे की मौत का आरोप गांव के बाबू लाल उरांव के परिवार पर लगाया और उनकी महिलाओं को “डायन” बताया। इसके बाद भीड़ ने बाबू लाल उरांव, उनकी पत्नी और अन्य परिजनों को जबरन उठाया और रात एक बजे के करीब पीट-पीटकर, फिर पेट्रोल छिड़ककर उन्हें जिंदा जला दिया।
मृतकों में सीता देवी (48), कातो देवी (65), मंजीत उरांव (25), बाबू लाल उरांव (50) और रानी देवी (23) शामिल हैं। हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी घटना के दौरान पुलिस को सूचना तक नहीं मिली। सुबह जब जानकारी मिली तो पुलिस मौके पर पहुंची, लेकिन तब तक आरोपी फरार हो चुके थे।
पुलिस ने 23 नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है। हालांकि अब तक केवल तीन गिरफ्तारियां हुई हैं। पुलिस इस बात का भी पता नहीं लगा सकी है कि हत्या का फैसला पंचायत में किसने लिया था।
घटना के बाद राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार पर विपक्ष ने हमला बोलना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले 5 महीनों में बिहार में 116 हत्याएं हो चुकी हैं, जिनमें से अधिकतर मामलों में आरोपी अभी भी फरार हैं। पूर्णिया की यह वारदात साफ तौर पर दर्शाती है कि बिहार पुलिस की सतर्कता और सूचना तंत्र में भारी खामी है।