नई दिल्ली 10 जुलाई 2025
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच मचे घमासान पर अब देश के सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी की है। विपक्षी दलों ने हाल ही में मतदाता सूची के विशेष व्यापक पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने पीठ से दलील दी है कि कड़े दस्तावेज़ों, नियमों और कम समय के कारण पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के मताधिकार छिनने का ख़तरा है। इसके साथ ही, अरशद अजमल, रूपेश कुमार, योगेंद्र यादव, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), राजद सांसद मनोज झा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर याचिकाओं में अदालत को बताया गया कि मतदाता सूची की व्यापक संशोधन प्रक्रिया अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), 325 (जाति, धर्म या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से कोई बहिष्कार नहीं), 326 (वयस्कों को वोट देने का अधिकार) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के नियम 21 ए के प्रावधानों का उल्लंघन करती है।
इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलें पूरी सुनने के बाद टिप्पणी की। इसने कहा कि बिहार की मतदाता सूची को संशोधित करने की प्रक्रिया संविधान के अनुसार जारी है। इसने कहा कि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत बिहार में मतदाता सूची (विशेष गहन पुनरीक्षण – एसआईआर) को संशोधित करने की प्रक्रिया शुरू करना उचित है। यह माना गया कि यह अनुच्छेद ईसीआई को चुनाव कराने, नियंत्रण करने और पर्यवेक्षण करने के लिए विशेष अधिकार देता है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने याद दिलाया कि आखिरी बार भारत के चुनाव आयोग ने ऐसी प्रक्रिया 2003 में की थी। इसी तरह, अदालत ने चुनाव आयोग के आचरण पर भी अपना गुस्सा व्यक्त किया। इसने कहा कि चुनाव आयोग के पास नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है। चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव आयोग मतदाताओं को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर कर रहा है। चुनाव आयोग ने कहा है कि आधार नागरिकता पहचान पत्र नहीं है