लखनऊ, 1 नवंबर 2025:
‘वर्ल्ड सिटी डे’ के मौके पर लखनऊ को यूनेस्को की “क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी” यानी “खाने की कला में रचनात्मक शहर” का दर्जा मिला है। यह सम्मान उज्बेकिस्तान के समरकंद में हुए यूनेस्को के 43वें सत्र में घोषित किया गया।
इस उपलब्धि ने लखनऊ को न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के नक्शे पर “खाने की राजधानी” के रूप में पहचान दिलाई है। वहीं अवधी खानपान, शाही रसोई की परंपरा और गंगा-जमुनी तहज़ीब के अनोखे स्वादों को वैश्विक सम्मान मिला है। बता दें देश और दुनिया भर के लोग यहां के खास गलौटी कबाब, काकोरी कबाब, अवधी बिरयानी, टोकरी चाट, पूरी-कचौड़ी, मलाई गिलौरी, मक्खन मलाई, दही जलेबी, मोतीचूर लड्डू के जायकों के कायल हैं।

लखनऊ के इन चटपटे व्यंजनों के पीछे उन मसालों का भी हाथ है जो खास तौर पर शोध कर बनाये गए और इन्हें तैयार करने वाले इन्हें जल्दी शेयर तक नहीं करते। इनका नाम सुनकर लोगों के मुंह में पानी आ जाता है लेकिन यहां रहने वाले लोगों के लिए ये व्यंजन सुबह दोपहर व शाम से रात तक के खानपान का हिस्सा बने हैं। यूं कहा जाए कि ये सब सिर्फ पकवान नहीं, बल्कि लखनऊ की नफासत और उससे एक खूबसूरत लगाव की कहानी हैं।
पर्यटन व संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि यह सम्मान लखनऊ की पाक विरासत के साथ-साथ उत्तर प्रदेश का गौरव है। उन्होंने कहा, “लखनऊ के हर पकवान में सदियों की कहानी, हुनर और महक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विज़न और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में आज उत्तर प्रदेश देश ही नहीं, बल्कि दुनिया में अपनी पहचान मजबूत कर रहा है।” उन्होंने कहा कि “कुलिनरी टूरिज्म यानी भोजन-आधारित पर्यटन” यूपी में तेजी से बढ़ रहा है, और आने वाले समय में यह लाखों लोगों को रोजगार देगा।
प्रमुख सचिव (पर्यटन) अमृत अभिजात ने बताया कि लखनऊ की हर थाली अपनी शाही रसोई, स्ट्रीट फूड और अपनापन की कहानी कहती है। उन्होंने कहा “यह दर्जा सिर्फ खाने का नहीं, बल्कि हमारी तहज़ीब, मेहमाननवाज़ी और साझा संस्कृति का सम्मान है।” 2024 में लखनऊ में 82 लाख से ज़्यादा पर्यटक आए थे, जबकि 2025 के पहले छह महीनों में ही यह आंकड़ा 70 लाख पार कर गया। इससे साफ है कि अब लखनऊ का स्वाद लोगों को दुनिया भर से खींच रहा है।
नामांकन से लेकर घोषणा तक का सफर
विशेष सचिव (पर्यटन) ईशा प्रिया ने बताया कि यह पूरी प्रक्रिया बेहद मेहनत और लगन से पूरी की गई।
31 जनवरी 2025 को उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने लखनऊ का नामांकन भारत सरकार को भेजा।
3 मार्च 2025 को केंद्र सरकार ने इसे यूनेस्को के लिए चयनित किया। फिर 31 अक्टूबर को समरकंद में लखनऊ को यह गौरवशाली दर्जा मिला।
विरासत विशेषज्ञ (हेरिटेज आर्किटेक्ट) आभा नरायन लांबा की टीम ने लखनऊ की खाद्य संस्कृति पर गहराई से नवाबी रसोई से लेकर चौक की गलियों तक शोध किया। दस्तावेज़ में उस्तादों, शेफ और आम परिवारों के पकवानों को शामिल किया गया। टीम ने बताया कि लखनऊ का खाना धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल है, जो आज भी ज़िंदा है।
अब लखनऊ का नाम दुनिया के उन 70 शहरों में शामिल हो गया है जो अपने खानपान के लिए मशहूर हैं जैसे हैदराबाद, अल-मदीना (सऊदी अरब), केलोना (कनाडा), क्वान्झो (चीन) और ज़रागोज़ा (स्पेन)। फिलहाल यूनेस्को की यह मान्यता सिर्फ एक अवॉर्ड नहीं, बल्कि उस शहर को सलाम है जहां भोजन विरासत है, मेहमाननवाज़ी संस्कृति है, और हर स्वाद अपनी विरासत की दास्तान सुनाता है।






