विजय पटेल
रायबरेली, 4 नवंबर 2025:
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर रायबरेली की सड़कों पर इस बार भी एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिला। डलमऊ के गंगा घाट की ओर बढ़ता बैलगाड़ियों का लंबा कारवां लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहा। श्रद्धालु पारंपरिक अंदाज़ में बैलगाड़ियों पर सवार होकर गंगा स्नान के लिए निकले।
जहां सड़कों पर आमतौर पर तेज़ रफ़्तार लग्जरी गाड़ियां दौड़ती हैं, वहीं इस अवसर पर सजे-धजे बैलों की गाड़ियों का यह काफ़िला देखकर राहगीर ठहरकर निहारते रह गए। यह दृश्य आधुनिकता के बीच भारतीय ग्रामीण संस्कृति की झलक दिखा रहा था।
कार्तिक पूर्णिमा पर रायबरेली, विशेषकर डलमऊ गंगा घाट, श्रद्धालुओं से पट गया। बैलों के गले में बंधी घंटियों की लयबद्ध ध्वनि पूरे इलाके में गूंजती रही। सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाने के लिए श्रद्धालु परिवार समेत कई दिनों की तैयारी करते हैं और घाट पर रुककर स्नान व पूजा-अर्चना करते हैं।
फुरसतगंज के शेषपाल बताते हैं कि उनके परिवार में यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। “हम चार दिन पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं, दो दिन घाट पर रुकते हैं और फिर वापसी करते हैं,” उन्होंने कहा।
वहीं अखिलेश यादव, निवासी नहर कोठी फुरसतगंज, पिछले 15 वर्षों से लगातार गंगा स्नान के लिए बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे हैं। वे बताते हैं, “पहले बहुत बैलगाड़ियां जाती थीं, अब कुछ कमी आई है, लेकिन इस यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी वही है।” यह बैलगाड़ी केवल गंगा स्नान का साधन नहीं, बल्कि ग्रामीण संस्कृति और पीढ़ियों से चले आ रहे विश्वास की जीवंत विरासत है।






