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डिजिटल इंडिया में भी कई लोग इस बुनियादी जरूरत से हैं वंचित, जानिए वजह

आज भी डिजिटल इंडिया में कई लोग सुरक्षित शौचालय से वंचित हैं। विश्व शौचालय दिवस याद दिलाता है कि स्वच्छता सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि हर इंसान का अधिकार है।

लखनऊ, 19 नवंबर 2025:

आज हम स्मार्टफोन और टेक्नोलॉजी की दुनिया में जी रहे हैं, लेकिन सोचिए… हमारे आसपास कितने लोग आज भी साफ-सफाई और शौचालय जैसी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। ये असमानता दिल तोड़ देती है और हमें याद दिलाती है कि असली विकास सिर्फ टेक्नोलॉजी में नहीं, बल्कि हर इंसान की स्वच्छता, सुरक्षा और गरिमा में है।

इसीलिए हर साल 19 नवंबर को दुनिया ‘विश्व शौचालय दिवस’ मनाती है। यह दिन याद दिलाता है कि डिजिटल इंडिया और तेजी से बढ़ते विकास के बीच भी कई लोग शौचालय जैसी बुनियादी जरूरत से दूर हैं।

जैक सिम और विश्व शौचालय संगठन

साल 2001 में सिंगापुर के स्वच्छता सुधारक जैक सिम (Jack Sim) ने World Toilet Organization (WTO) बनाई। उन्होंने लोगों में टॉयलेट और स्वच्छता पर बात करने का तरीका बदला। अब शर्म की बजाय समाधान पर ध्यान दिया जाने लगा। साल 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 नवंबर को आधिकारिक रूप से विश्व शौचालय दिवस घोषित किया। यह तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि इसी दिन WTO की स्थापना हुई थी।

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विश्व स्तर पर स्वच्छता का अभियान

WTO ने 200 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स शुरू किए- ओपन डिफिकेशन रोकना, महिलाओं की सुरक्षा, स्वच्छ टॉयलेट और पानी बचाने जैसे अभियान। साल 2020 के बाद यह दिन सतत विकास लक्ष्यों (SDG) का हिस्सा बन गया। आज यह अभियान लगभग 150 देशों में मनाया जाता है।

सिर्फ शौचालय नहीं, सुरक्षा और आदत भी है जरूरी

विश्व शौचालय दिवस का मकसद सिर्फ शौचालय बनाना नहीं है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हाइजीन आदत, स्वच्छता संस्कृति और सुरक्षा अधिकार हर किसी को मिलना चाहिए। चौंकाने वाली बात ये है कि, कई घरों में आज भी शौचालय नहीं है। लाखों महिलाएं असुरक्षित जगहों पर शौच करने को मजबूर हैं। अस्वच्छ शौचालय से हर साल लाखों बच्चे डायरिया जैसी बीमारियों से मरते हैं।

क्या है 2025 का संदेश?

इस साल का थीम है Sanitation In A Changing World। टैगलाइन है-“हमें हमेशा शौचालय की आवश्यकता होगी।” यह दिन याद दिलाता है कि स्वच्छता स्वास्थ्य, सुरक्षा और सम्मान का आधार है। महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा सीधे टॉयलेट उपलब्धता से जुड़ी है। सैनिटेशन की कमी गरीबी, बीमारी और असमानता बढ़ाती है। स्वच्छता सिर्फ सुविधा नहीं, यह मानवाधिकार है।

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