लखनऊ, 20 दिसंबर 2025:
यूपी की राजधानी लखनऊ में स्थानीय निकाय चुनाव से जुड़ा एक अहम और नजीर बनने वाला फैसला सामने आया है। फैजुल्लागंज तृतीय (वार्ड संख्या 73) से निर्वाचित भाजपा पार्षद प्रदीप कुमार शुक्ला को शपथ पत्र में संपत्ति संबंधी जानकारी छिपाना भारी पड़ गया। अदालत ने उनका निर्वाचन रद्द करते हुए समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी ललित तिवारी को पार्षद पद का निर्वाचित विजेता घोषित कर दिया है।
यह फैसला अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश काशी प्रसाद सिंह यादव की अदालत ने सपा प्रत्याशी ललित तिवारी द्वारा दायर चुनाव याचिका को स्वीकार करते हुए सुनाया। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि प्रदीप कुमार शुक्ला ने नामांकन के समय दाखिल शपथ पत्र में अपनी पहली पत्नी और बच्चों की चल-अचल संपत्तियों का विवरण छिपाया जो कि उत्तर प्रदेश नगर पालिका नियमावली का स्पष्ट उल्लंघन है।

मालूम हो कि नघर निगम के चुनाव 2023 में प्रदीप कुमार शुक्ला को 4972 मत मिले थे। ललित तिवारी को 3298 मत प्राप्त हुए थे। मतों के आधार पर प्रदीप शुक्ला को विजेता घोषित किया गया था लेकिन चुनाव प्रपत्रों में आवश्यक और अनिवार्य जानकारी न देने को अदालत ने कदाचार की श्रेणी में माना। इसी आधार पर उनका निर्वाचन शून्य घोषित किया गया। याची ललित तिवारी को उक्त वार्ड से निर्वाचित घोषित किया गया।
ललित तिवारी की ओर से यह चुनाव याचिका अधिवक्ता मंजीत कुमार मिश्रा और करुणा शंकर तिवारी द्वारा दाखिल की गई थी। याचिका में तर्क दिया गया कि भाजपा प्रत्याशी ने अपने आश्रितों की संपत्तियों की जानकारी जानबूझकर छिपाई जिससे मतदाताओं को भ्रमित किया गया। अदालत ने इन दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और ईमानदारी अनिवार्य है। इसका उल्लंघन करने वाले प्रत्याशी को संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
अदालत का फैसला आने के बाद ललित तिवारी ने कहा कि यह निर्णय सत्य और कानून की जीत है। न्यायपालिका के इस फैसले से यह सिद्ध होता है कि कानून आज भी जीवित है। उन्होंने यह भी कहा कि कानून को ठेंगा दिखाने वालों को कानून कभी माफ नहीं करता।
ललित तिवारी ने इस जीत का श्रेय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को देते हुए उनका आभार व्यक्त किया। साथ ही पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि वे पार्टी की नीतियों पर खरे उतरते हुए जनता की सेवा पूरी निष्ठा से करते रहेंगे। यह फैसला न केवल लखनऊ बल्कि पूरे प्रदेश में चुनावी पारदर्शिता को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश के रूप में देखा जा रहा है।






