
पटना, 9 जुलाई 2025
वैसे देश में किसी भी काम के लिए और अपनी भारतीय नागरिकता की पहचान के लिए आधार को ही एक पहचान योग्य दस्तावेज़ के रूप में देखा जाता है। पर बीते दिनों से चले आ रहे बिहार में विधानसभा चुनाव में लोगों की पहचान को लेकर मतदाता की वैधता को लेकर अलग ही सवाल उठ रहे है।
बता दे कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए स्वीकृत पहचान के दस्तावेजों की सूची में से आधार को बाहर रखा गया है। जिससे इस मामले को लेकर पूरे देश में विवाद चल रहा है। अब इस पर हाल ही में यूआईडीएआई (UIDAI) के सीईओ भुवनेश कुमार ने भी अपनी ताजी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस मामले में कहा कि आधार कभी भी पहली पहचान नहीं थी। उन्होंने बढ़ते फर्जी आधार घोटाले को रोकने के लिए उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला। कुमार ने बताया कि वर्तमान में लोगों को जारी किए जाने वाले आधार कार्ड में एक विशेष क्यूआर कोड होता है, जिसमें एक अंतर्निहित सुरक्षा तंत्र होता है।
भुवनेश ने कहा कि यूआईडीएआई द्वारा विकसित आधार क्यूआर स्कैनर ऐप नकली आधार कार्ड का पता लगाने में मदद करेगा। यूआईडीएआई प्रमुख ने बताया कि नए आधार ऐप का विकास अंतिम चरण में है। उन्होंने कहा कि इस नए ऐप के ज़रिए लोगों को अपने आधार कार्ड की भौतिक प्रतियाँ साझा करने की ज़रूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि लोग अपनी सहमति के आधार पर अपनी आधार जानकारी पूरी या मास्क्ड फ़ॉर्मेट में साझा कर सकेंगे।
24 जून को जारी चुनाव आयोग के आदेश के अनुसार, 25 जुलाई तक बिहार के लगभग आठ करोड़ मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल करने का लक्ष्य है। ज्ञातव्य है कि इसका उद्देश्य अपात्र नागरिकों के नाम हटाकर केवल पात्र नागरिकों को ही मतदाता सूची में शामिल करना है। वर्तमान में, बिहार में मतदाताओं को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि आधार और मनरेगा जॉब कार्ड पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि यूआईडीएआई के सीईओ की टिप्पणियों ने ऐसे समय में एक नई बहस छेड़ दी है जब चुनाव आयोग आधार कार्ड को मतदाता पहचान पत्रों से जोड़ने की योजना बना रहा है।
इस बात पर विवाद चल रहा है कि आधार कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज, जिनका उपयोग देश भर में पहचान के प्रमाण के रूप में किया जाता है, बिहार चुनाव के लिए मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया में विचार नहीं किए जा रहे हैं।






