लखनऊ, 25 दिसंबर 2025:
“भुखमरी ईश्वर का विधान नहीं, मानवीय व्यवस्था की विफलता का परिणाम है।” ऐसा विचार रखने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म आज ही के दिन 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे सितारे रहे, जिन्होंने संघर्ष, शांति और नेतृत्व को नई परिभाषा दी। वे न केवल कुशल राजनेता थे, बल्कि विचारों के बल पर राजनीति करने वाले दुर्लभ व्यक्तित्व भी थे।
छह सीटों से संसद तक का अनोखा सफर
अटल बिहारी वाजपेयी देश के इकलौते ऐसे नेता रहे, जो चार अलग-अलग राज्यों की छह लोकसभा सीटों से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। उत्तर प्रदेश की लखनऊ और बलरामपुर सीट, गुजरात की गांधीनगर सीट, मध्य प्रदेश की ग्वालियर और विदिशा सीट और दिल्ली की नई दिल्ली सीट से उनकी जीत ने उन्हें राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और जनसंघ के गठन व विस्तार में अहम भूमिका निभाई। वर्ष 1957 में वे पहली बार बलरामपुर से सांसद चुने गए।

विदेश नीति में हिंदी का ऐतिहासिक प्रवेश
1975 की आपातकाल के बाद जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, तब अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। इसी कार्यकाल में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित किया और ऐसा करने वाले भारत के पहले नेता बने। यह क्षण भारतीय भाषा, सांस्कृतिक अस्मिता और कूटनीति के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज हुआ।
13 दिन का कार्यकाल और मजबूत होती पहचान
अटल बिहारी वाजपेयी को 1996 में देश के सबसे छोटे कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री के रूप में भी याद किया जाता है। उस समय भाजपा 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाई। परिणामस्वरूप अटल जी को केवल 13 दिन बाद इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि यह छोटा कार्यकाल उनकी कमजोरी नहीं, बल्कि उनके धैर्य और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक बना और उन्होंने बाद में तीन बार प्रधानमंत्री बनकर देश का नेतृत्व किया।
संसदीय जीवन और राष्ट्रीय सम्मान
अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा के 9 बार और राज्यसभा के 2 बार सांसद रहे। उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 1994 में उन्हें पद्म विभूषण और 2015 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 16 अगस्त 2018 को लंबी बीमारी के बाद दिल्ली में उनका निधन हुआ।
अटल जयंती पर शुरू हुई सुशासन दिवस की परंपरा
साल 2014 में मोदी सरकार ने उनकी जयंती को सुशासन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। तब से हर साल 25 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य नागरिकों और छात्रों को सरकार की जिम्मेदारियों से अवगत कराना और देश में प्रभावी व पारदर्शी शासन को बढ़ावा देना है।






