नई दिल्ली, 2 अप्रैल 2025
दिल्ली के कानून मंत्री कपिल मिश्रा को बड़ा झटका देते हुए एक अदालत ने मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में 2020 के दंगों में उनकी कथित भूमिका की जांच के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया।अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने इसे प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध पाया, जिसके लिए मिश्रा और अन्य के खिलाफ जांच की आवश्यकता है। न्यायाधीश ने कहा, “यह स्पष्ट है कि मिश्रा कथित अपराध के समय इलाके में थे… आगे जांच की आवश्यकता है।”
अदालत ने दिल्ली पुलिस को मामले में अगली सुनवाई की तारीख 16 अप्रैल तक “अनुपालन रिपोर्ट” दाखिल करने का निर्देश दिया। विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है। नागरिकता कानून को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के बाद 24 फरवरी, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और कई घायल हो गए थे।
यह आदेश यमुना विहार निवासी मोहम्मद इलियास द्वारा दायर एक आवेदन पर आया, जिसमें एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। दिल्ली पुलिस ने याचिका का विरोध किया और कहा कि दंगों में मिश्रा की कोई भूमिका नहीं थी।
आज के मामले के अलावा, भाजपा के मिश्रा और अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा और अभय वर्मा सहित अन्य पार्टी नेताओं के खिलाफ 2020 के दंगों से पहले उनके कथित नफरत भरे भाषणों के लिए एफआईआर की मांग करने वाली एक अन्य जनहित याचिका वर्तमान में दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है।
हालांकि, मंगलवार के आदेश से मिश्रा के इस्तीफे या उनके करियर की वैधता पर फिलहाल कोई अन्य राजनीतिक प्रभाव पड़ने का रास्ता साफ नहीं होता है। पुलिस ने याचिका पर बहस के दौरान अदालत को बताया था कि मिश्रा पर दोष मढ़ने के लिए एक योजना बनाई जा रही है। इसमें कहा गया है कि दंगों के पीछे की बड़ी साजिश में मिश्रा की भूमिका की पहले ही जांच की जा चुकी है।
पुलिस ने कहा, “डीपीएसजी (दिल्ली विरोध समर्थन समूह) की चैट से पता चलता है कि चक्का जाम की योजना पहले से ही बनाई गई थी, 15 और 17 फरवरी, 2020 की शुरुआत में। पुलिस जांच से पता चला है कि मिश्रा पर दोष मढ़ने की योजना बनाई गई थी।”
इलियास ने मिश्रा, दयालपुर के तत्कालीन थाना प्रभारी और भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट तथा पूर्व भाजपा विधायक जगदीश प्रधान और सतपाल सांसद सहित पांच अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की।