Uttar Pradesh

बड़ा बदलाव : लॉ ग्रेजुएट सीधे नहीं बन सकेंगे जज, तीन साल की प्रैक्टिस जरूरी

लखनऊ, 20 मई 2025:

ज्यूडिशियल सर्विसेज में भर्ती को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है, जिसका सीधा असर देश के उन हजारों लॉ ग्रेजुएट्स पर पड़ेगा जो स्टेट ज्यूडिशियल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं। वह ये कि सिविल जजों की भर्ती के लिए तीन साल की प्रैक्टिस का नियम बहाल कर दिया गया है। यानी अब लॉ ग्रेजुएट की सीधी भर्ती नहीं की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि न्यायिक सेवा में प्रवेश स्तर के पदों के लिए आवेदन करने के लिए उम्मीदवार को एक वकील के रूप में कम से कम तीन साल का अनुभव होना जरूरी है। ये तीन साल तब से शुरू मानें जाएंगे जब अभ्यर्थी का प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन होगा।

अवध बार एसोसिएशन, हाईकोर्ट लखनऊ के पूर्व अध्यक्ष व यूपी के पूर्व अपर महाधिवक्ता राकेश चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बारे में बात करते हुए बताया कि शेट्टी कमीशन की रिकम्डेशन पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने ये अहम फैसला दिया है। जस्टिस गवई ने इस मामले में कहा कि नए लॉ ग्रेजुएट्स को सीधे भर्ती करने से कई तरह की समस्याएं पैदा हुई हैं, जैसा कि हाईकोर्ट के हलफनामों से पता चलता है और हम हाईकोर्ट की इस बात पर सहमत हैं कि नए जजों को न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता है।

इस पूरे मामले पर सीजेआई ने क्या कहा

-उन्होंने कहा कि लॉ ग्रेजुएट्स के लिए शुरुआती वर्षों में अवसर सीमित होंगे
-जजों के सामने सेवा ग्रहण करने के दिन से कई चुनौतियां और सवाल होते हैं जिनका जवाब केवल किताबी ज्ञान से नहीं मिलता बल्कि सीनियर वकीलों की सहायता करके और कोर्ट को समझकर ही हासिल किया जा सकता है।
-इसलिए परीक्षा से पहले कुछ सेवाओं को फिर से शुरू करना आवश्यक है।
-हम मानते हैं कि प्रोविजनल पंजीकरण होने के समय से अनुभव की गणना की जाएगी।
-कम से कम 10 साल का अनुभव रखने वाले वकील यह प्रमाणित करेगा कि उम्मीदवार ने न्यूनतम आवश्यक अवधि के लिए अभ्यास किया है।
-सभी उच्च न्यायालय और राज्य सरकारें अपने नियमों में संशोधन करेंगे ताकि सिविल जज सीनियर डिवीजन के लिए 10 प्रतिशत त्वरित पदोन्नति के लिए आरक्षित हो।

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