विनोद कपूर
पटना, 11 अप्रैल 2025:
कांग्रेस पार्टी बिहार में नया सामाजिक समीकरण साधने की राजनीति पर काम कर रही है। राहुल गांधी के दो महीने में तीसरी बार बिहार आने और प्रदेश अध्यक्ष से जिला अध्यक्षों की नियुक्ति तक में देखा जा सकता है।
राहुल गांधी की सक्रियता में दिख रही कसक पूरी करने की ललक
दो माह के भीतर बिहार में राहुल गांधी की सक्रियता बता रही है कि पार्टी अपनी कसक पूरी करने के लिए मैदान में डट गई है। इससे पहले दो बार संविधान बचाओ सम्मेलन मे आए और जातीय गणना का मुद्दा उठाया, साथ ही उन्होंने पिछड़ा, अतिपिछड़ा और गरीबों के हक पर बात की। राहुल सात अप्रैल को बिहार के बेगूसराय में थे और डेढ़ किलोमीटर तक पार्टी की पलायन रोको रैली में भी चले। बाद में राजधानी पटना मे पार्टी मुख्यालय सदाकत आश्रम आ गये,वो कार्यकर्ताओं को संबोधित ही कर रहे थे कि पार्टी के दो गुटों में मारपीट शुरू हो गई।
संगठन के मुखिया बदलकर दिए संकेत
पार्टी हाईकमान ने कुछ दिन पहले ही अखिलेश प्रताप सिंह को हटा कर विधायक राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। राजेश कुमार रविदास समाज से आते हैं। उनकी छवि विनम्र नेता की है। इसी बीच 40 जिलों के अध्यक्ष को भी बदल दिया गया। बदले गये अधिकतर पिछड़े अतिपिछड़े और मुस्लिम हैं जबकि पहले अगड़ों खासकर ब्राह्मणों का कब्जा था। कांग्रेस 1980 तक बिहार में अल्पसंख्यक, पिछड़े,और सवर्णों में खासकर ब्राह्मणों पर सियासी दांव खेलती रही और उसे सफलता भी मिलती गई।
राहुल ने माना अपनी भूमिका नहीं निभा पाई पार्टी, अब राजद व वामदल बनेंगे खेवनहार
राहुल गांधी ने, स्वीकार किया कि पार्टी ने अपनी भूमिका का सही से निर्वहन नही किया जिसका नतीजा है कि कांग्रेस दशकों से सत्ता से बाहर है। राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि कांग्रेस बिहार में राजद नेता तेजस्वी यादव और वामदलों के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। चुनाव में तेजस्वी यादव मुख्य भूमिका में होंगे। बेगूसराय में राहुल गांधी के समर्थन में जितने लोग शामिल हुए उससे उनका हौसला जरूर बढ़ा होगा। 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटें मिली थीं कांग्रेस को लेकिन वो 19 ही जीत सकी। राहुल गांधी को तालमेल में कितनी सीटें मिलेंगी। यह बात अभी बहुत दूर है लेकिन पार्टी का खोया जनाधार पाने के लिए उन्हें मेहनत तो करनी ही होगी।